Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ ०२ चमरेन्द्रादीनामग्र महिषीनिरूपणम् १५७
टीका-अथ चमरेन्द्रादेश्चतुर्णां चतुर्णां लोकपालानां तदन्येषां च अग्रमहिषी वक्तव्यतामाह-' चमरस्स णं भंते!' इत्यादि, 'चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमस्स महारन्नो कह अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ ?' स्थविरा: पृच्छन्ति - हे भदन्त । चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य सोमादि चतुर्णां लोकपालानां मध्ये सोमस्य महाराजस्य कति - कियत्यः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - ' अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आर्याः ! चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, 'तंजहा - कणगा १, कणगळया २ चित्तगुत्ता ३, वसुंधरा ४,' तद्यथा कनका १, कनकलता २, चित्रगुप्ता ३, वसुन्धरा ४, च, देवी विशेष वक्तव्यता'चमरस्सणं भंते ' इत्यादि ।
टीकार्थ - इस सूत्र में सूत्रकार ने चमरेन्द्र आदिकों के चार २ लोकपालों की तथा इनसे भिन्न देवों की अयमहिषियों की वक्तव्यता का प्रतिपादन किया है इसमें आर्यों ने प्रभु से ऐसा पूछा है - हे भदन्त ! 'चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स' असुरकुमारों के इन्द्र और असुरकु मारों के राजा चमर के जो चार लोकपाल कहे गये हैं उनके बीच में सोम लोकपाल महाराज की कितनी अग्रमहिषियां कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु ने कहा- 'अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' हे आर्यो! सोम लोकपाल की चार अग्रमहिषियों कही गई हैं 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं - ' कणा १, कणगलया २, चित्तगुत्ता ३, वसुंधरा ४' कनका, દેવીવિશેષ વકતવ્યતા
चमरस्स णं भंते ! छत्याहि
ટીકા –આ સૂત્રમાં સૂત્રકારે ચમરેન્દ્ર આદિ ઇન્દ્રોના ચાર ચાર લેાકપાલની તથા ખીજા ઇન્દ્રોની અગ્રમહિષીઓની પ્રરૂપણા કરી છે. આ વિષયને અનુલક્ષીને स्थविर लगवाताथे भडावीर अलुने या प्रभा प्रश्न पूछयो - " चमरस्स णं भंते! असुरिंदर ० " हे भगवन् ! असुरकुभाराना न्द्रि, मसुरडुभारशन यभरना જે ચાર લેાકપાલ કહ્યાં છે, તેમાંના જે સેામ મહારાજ નામના લેાકપાલ છે, તેમને કેટલી અગ્રમહિષીએ (પદ્મરાણીએ ) કહી છે ?
महावीर अलुना उत्तर- " अज्जो ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ " डे आर्यो । सोभ सोझ्यासने यार अश्रमहिषीयो ही छे. " तंजहा " तेमनां नाभ मा प्रमाणे छे-" कणगा१, कणगलवार, चित्तगुत्ता३, वसुंधरा४ " (१) उनडा, (२) उनसता, ( 3 ) चित्रगुप्ता, मने (४) वसुधरा. “ तत्थणं एगमेगाए देबीए
"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯