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सिद्धान्तसार दीपक उत्पन्न होने वाले ये पृथिवियों के नाम जिनेन्द्र भगवान ने कहे हैं। तथा विद्वानों के द्वारा जाने के इन्हीं पृथिवियों के पर्यायवाची नाम धागे कहे जावेंगे ॥ ३-५ ।।
विशेषार्थ:-अधोभाग में स्थित सात नरक भूमियों में से रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा ये दोनों । मेरु के नीचे एक राजू में हैं और शेष पांच भूमियां एक एक राजू के अन्तर से हैं, इस प्रकार छह राजा में सात नरक हैं और इनके नीचे एक राजू में मात्र पंचस्थावर स्थान है। ये रत्नप्रभा प्रादि सार्यो । पृथिवियाँ सार्थक नाम बालो हैं क्योंकि इनमें क्रम से रत्न, शक्कर, रेत, कीचड़, घुग्रा, अन्धकार और महा अन्धकार के सदृश प्रभा पाई जाती है। अब सातों नरसों के नाम कहते हैं:--
धर्मावंशाह्वयामेघाजनारिष्टाभिधाततः ।
मघवीमाघवी चैता अधोऽधः सप्तभूमयः ।।६।। अर्थः--(१) घर्मा, (२) वंगा, (३) मेघा, (४) अञ्जना, (५) अरिष्टा, (६) मघवो और | (७) माधवी ये सात पृश्धियाँ नीचे नीचे अर्थात् कमशः एक के नीचे एक हैं ।।६।। सात नरक के बीचे निगोद स्थान का कथन करते हैं:
सप्तानां श्वभ्रपश्वीनामधो भागेऽस्ति केवलम् । एक रज्जुप्रभं क्षेत्रं पृथिवीरहितं भृतम् ॥७॥ नानाभेदैनिकोतादिपञ्चस्थावरवेहिभिः ।
रत्नप्रभाधरायाश्च त्रयो भेदा इमे स्मृताः ।। अर्थ:-सातों नरक पृध्वियों के नीचे एक राजू प्रमाण क्षेत्र नरक पृथ्वी से रहित है, उसमें केवल पञ्चस्थावरों के शरीर को धारण करने वाले नाना प्रकार के निगोद आदि स्थावर जीव रहते हैं। रत्नप्रभा पृथिवी के प्रामे कहे जाने वाले तीन भेद जानना चाहिये ।। ७-८ ।। चार श्लोकों द्वारा प्रथम पृथिवी के भेद प्रभेदों को कहते हैं:
खरभागोऽथ पांशस्ततोऽध्यब्बहलांशकः । खरभागे भवन्त्यस्याः इमे षोडशभूमयः ।।६।। चित्रावनाथ वैडूर्या लोहिता च मसारिका । गोमेदा हि प्रवालास्याः ज्योतिरसाजनाह्वया ॥१०॥