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पञ्चमोऽधिकार :
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हरिकान्ता नदी पूर्व कहे हुये पूर्व समुद्र के द्वार के व्यासादिक के प्रमाण के समान प्रमाण वाले अपने प्रवेश द्वार से पश्चिम समुद्र में प्रविष्ट कर जाती है :
सीता नदी का वर्णनः-
नील पर्वत पर स्थित केसरी सरोवर की दक्षिण दिशा में ५० योजन चौड़ा श्रौर ७५ योजन ऊँचा तथा तोरणस्थ अर्हन्त प्रतिमा और दिक् कन्याओं के भवनों से मण्डित एक वज्रमय द्वार है 1५० योजन चौड़ी और एक योजन गहरी सीता नदी उस द्वार से निकलकर पर्वत के शिखर पर द्रह व्यास से हीन पर्वत के अर्ध व्यास प्रमाण अर्थात् (१६८४२१४ - २०००=१४८४२÷२ = ७४२११हे योजन आगे कुलाचल तट पर्यन्त प्राती है। उस पर्वत पर ५० योजन चौड़ी, चार योजन लम्बी और चार योजन मोटी एक गोमुखाकार प्रणाली स्थित है । पर्वत के नीचे जमीन पर ५० योजन चौड़ा, ८० योजन गहरा तथा रत्नवेदी, रत्नद्वार एवं रत्नों के तोरणों आदि से मण्डित एक कुण्ड है । उस कुण्ड के मध्य • जल से [ चार योजन ऊंचा और ] ६४ योजन चौड़ा द्वीप है । उस द्वीप के मध्यभाग में ८० योजन ऊंचा, मूल में ३२ योजन चौड़ा, मध्य में १६ योजन और शिखर पर आठ योजन चौड़ा एक पर्वत है । उस पर्वत के अग्र भागपर दो योजन ऊंचा, पृथ्वीतल पर तीन योजन लम्बा, मध्य में दो योजन लम्बा और शिखर पर एक योजन लम्बा तथा एक कोस चौड़े अभ्यन्तर व्यास वाला एक दिव्य गृह है । जिसका द्वार ३२० योजन चौड़ा और ६४० योजन ऊंचा है, तथा जो चार गोपुर, वेदी एवं वन आदि से अल ंकृत है । उस गृह के ऊर्ध्वभाग में पद्मकणिका पर सिंहासन स्थित है जिसमें शाश्वत जिनप्रतिना विद्यमान रहती है । ८० योजन चौड़ी और ४०० योजन ऊंची वह सीता नदी जिनबिम्ब के मस्तक पर से बहती हुई २०० योजनों द्वारा पर्वत को अन्तरित करती है । अर्थात् पर्वत के तट पर स्थित उपर्युक्त प्रणालिका द्वारा नील पर्वत से २०० योजन दूरी पर नीचे गिरती है । इसके बाद सीता कुण्ड के दक्षिण द्वार से निकल कर दक्षिणाभिमुख होती हुई उत्तरकुरु है नाम जिसका ऐसी उत्तमभोगभूमि के मध्य से श्राकर मेरु पर्वत के समीप माल्यवान गजदन्त पर्वत को भेद कर अर्थात् माल्यवान् गजदन्त पर्वत की दक्षिण दिशा सम्बन्धी गुफा में प्रवेश कर प्रदक्षिणा रूप से सुमेरु पर्वतको अर्ध योजन दूर से ही छोड़कर पूर्व भद्रशालवन एवं पूर्व विदेह क्षेत्र के मध्य से बहती हुई ५०० योजन चौड़ी और १० योजन हो सीता नदी अपने प्रवेश द्वार से पूर्व समुद्र में प्रविष्ट होती है । वह समुद्र प्रवेश द्वार ५०० योजन चौड़ा, ७५० योजन ऊंचा, दो कोस गहरा (नींव ) और अर्धयोजन मोटा तथा तोरणस्थ ग्रहन्त बिम्ब एवं दिक्कन्याओं के श्रावासों से मण्डित जानना चाहिये ।
सोतोवा नदी का विवेचनः
निषपर्व तस्थ तिमिञ्छ सरोवर के उत्तरद्वार का व्यास आदि सीता निर्गम द्वार के व्यासादि के समान है । सोता सदृश व्यास और ग्रवगाह वाली सीतोदा नदी तिगिन्छ सरोवर के उस उत्तर द्वार