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दशमोऽधिकारः
मङ्गलाचरण एवं प्रतिज्ञा सूत्र:--
अथ पंचगुरून् नत्वा धर्मसाम्राज्यनायकान् । महतस्त्रिजगत्पूज्यान् प्रवक्ष्ये लवणार्णवम् ||१||
अर्थः यत्र त्रैलोक्य पूज्य और धर्म साम्राज्य के अधिनायक पञ्च परमेष्ठियों को नमस्कार करके लवर समुद्र का वर्णन करूँगा || १||
अब जम्बूद्वीप की परिधि और प्राकार का प्रमाण कहते हैं योजनानां त्रिलक्षाणि सहस्राण्यपि षोडश । द्वेशते सप्तविंशत्यधिके कोशास्त्रयस्तथा ||२॥ धनुषां शतमेकं किलाष्टाविंशतिसंयुतम् । त्रयोदशांगुलान्यगुलं साधिकमञ्जसा ॥३॥ इत्येवं संख्या जम्बूद्वीपस्य परिधिता । सूक्ष्मः प्राकार एतस्य स्यादष्टयोजनोन्नतः ||४|| योजनानां द्विषव्यासो भूले मध्येऽष्ट विस्तृतः । चतुभिविस्तृतोऽन्ते च वज्राङ्गो वलयाकृतिः ॥ ५॥
अर्थ:- ( एक लाख योजन प्रमाण विष्कम्भ व श्रायाम से सहित ) जम्बूद्वीप की परिधि का सूक्ष्म प्रमाण तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस एक सौ अट्ठाईस घनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है । अर्थात् ३१६२२७ यो०, ३ कोश १२० धनुष और १३३ अंगुल से कुछ अधिक है । इस जम्बुद्वीप को चारों ओर से वेष्टित करने वाला एक वज्रमय वलयाकार कोट है, जो पाठ योजन ऊँचा, मूल में बारह योजन, मध्य में प्राठ योजन और ऊपर चार योजन प्रमाण घोड़ा है ॥२-५॥
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म प्राकार ऊपर स्थित वेदिका का निरूपण करते हैं। प्राकारोपरिभागेऽस्ति पद्मवेदी च शाश्यता | धनुःपञ्चशतव्यासादिव्या क्रोशद्वयोच्छ्रिता ||६||