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एकादशोऽधिकार :
[ ४२६ अर्थः- जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा सम्यक् प्रकार से कहे हुये जीवादि पदार्थों एवं सम्पूर्ण धर्मों का पालन करके जो जीव मोक्ष गये हैं, जो प्राचार्य प्रादि जीध रक्षा के लिए जीव रक्षा का उपदेश देते हैं और जो ज्ञानवान् समस्त मुनिजन उस उपदेश की परम श्रद्धा करते हैं, वे सब पूज्य पंचपरमेष्ठी मुझे अपने अपने गुण देवें । अर्थात् उनके गुण मुझे प्राप्त हों ।।२१६।।
इस प्रकार भट्टारक सकलको ति विरचित सिद्धान्तसारदीपक नाम महाग्रन्थ में जीवों को कुल-काय-पायुसंख्या एवं अल्पबहुत्व आदिका
वर्णन करने वाला ग्यारह्वा अधिकार समाप्त ।।