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चतुर्दशोऽधिकार
[ ४६३ स्थितो स्फुरद्रत्नमयी महतीं जिनेश्वरप्रतिमा बोक्ष्य प्रत्यक्षेणायोध्या नगरस्थचको निर्मलसम्यक्त्वानुरामेण जिनभक्त्या च पुष्पाञ्जलिम क्षिप्य नुतिपूर्वकमर्घ ददाति । अभिजित्नक्षत्रचन्द्रयोः संयोगे धावणे मासि कृष्णपक्षस्य प्रतिपदिने युगस्यादिः स्यात् । आगमोक्त दिनानयन विधिना वर्षस्य षट्पष्टयधिकत्रिशतदिवसाः भवन्ति तस्य दिनसमूहाईस्य यदा जम्बूद्वीपाभ्यन्तराद्दक्षिणेन धहि गेषु भास्करो गच्छति तदा तस्य दक्षिणायन संज्ञा। यदा पुनलंबणसमुद्रात्सकाशादुतरेणाम्यन्सरमार्गेषु भानुरायाति तदास्योत्तरायण संज्ञेति तत्र यटा जम्बद्वीपाभ्यन्तरे प्रथममार्गे परिधी कर्कट संक्रान्तिदिने दक्षिणायनप्रारम्भे दिनकरस्तिष्ठति तथा चतुर्नवतिसहस्र पञ्चशतपचविंशतियोजनप्रमाणः उत्कर्षणादित्य विमानस्य पूर्वापरेणातप विस्तारः प्रसर्पति । शतयोजनप्रम ऊतिपश्च । अधस्तापोऽष्टादश शतप्रमाणो जायते । अष्टादशमुहर्त दिवसो भवति । द्वादशमहतः रात्रिश्च ततः क्रमेणातपहानी सत्यां महतंव्यस्यक षष्टि भागकृत्तस्यैको भागो दिवस मध्ये दिनं दिन प्रति हीयते । यावल्लवणाधी अवसानमार्ग माघमासे मकरसंक्रान्ती उत्तरायण दिने षोडशाधिक विषष्टिसहस्र योजनप्रमो जघन्येन सर्यविमानस्यातपो विस्सरति । द्वादशमुहूदिवसो भवेत् । अष्टादशमुहूर्तरात्रिश्च ।
प्रम मन्द बुद्धि जनों को जान कराने के लिये सूर्य का कुछ विवरण करते हैं :
उन १४ गलियों में से जम्बूद्वीप की अभ्यन्तर (प्रथम ) वीथि (मार्ग ) में प्रवेश करते हुए श्रावण मास, कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को कर्क संक्रान्ति के दिन दक्षिणायण के प्रारम्भ में निषध कुलाचल पर्वत के तट से ( १४६२१३५ योजन) ऊपर पाने पर सूर्य प्रथम मार्ग में प्रथम उदय करता है । ( अर्थात् पंचवर्षीय युग की समाप्ति के बाद दूसरे युग के प्रारम्भिक सूर्य उदय को प्रथम उदय कहते हैं। ) उस समय सूर्य विमानस्थ ध्वजस्तम्भ के अग्रभाग पर स्थित देदीप्यमान रनमयी जिनेन्द्र भगवान् की महान प्रतिमा को प्रत्यक्ष देख कर अयोध्या (नगरस्थ अपने ८४ खण्ड के महल के ऊपर) स्थित प्रथम चक्रवर्ती क्षायिक सम्यक्त्व के अनुराग से तथा जिनेन्द्र भक्ति से पुष्पाञ्जलि देकर नमस्कार पूर्वक { भगवान को) अर्घ चढ़ाता है। अभिजित् नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का संयोग होने पर श्रावण मास, कृष्णपक्ष को प्रतिपदा के दिन पंचवर्षीय युग का प्रारम्भ होता है । आगम (त्रिलोकसार गाथा ४०८४०६ ) में कही हुई दिनानयन विधि के अनुसार एक वर्ष में ३६६ दिन होते हैं। एक प्रनयन में इस दिन समूह का अर्धभाग अर्थात् १५३ दिन होते हैं । जम्बूद्वीप की अभ्यंतर वीथी से प्रारम्भ कर जब सूर्य दक्षिण को ओर बाह्य भागों में गमन करता है, तब उसकी दक्षिणायन संज्ञा है और जब सूर्य लवणसमुद्र से उत्तर की ओर अभ्यंतर की पोर आता है तब उसकी उत्तरायण संज्ञा है, इस प्रकार जब सूर्य अम्बुद्वीप के भीतर प्रथम मार्ग की परिधि में ककं संक्रान्ति के दिन दक्षिणायन का प्रारम्भ करता हुमा ठहरता है, तब उत्कृष्ट रूप से सूर्य, विमान के प्रागे (पूर्व में) और पीछे (पश्चिम में) ताप क्षेत्र ६४५२५ योजन ( ३७८१००००० मील ) पर्यन्त फैलाता है । (तया उत्तर में ४६८२० योजन और दक्षिण में ३३५