Book Title: Siddhantasara Dipak
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 567
________________ पंचदशोधिकार | शुक्रादीनां चतुर्णां स्युः पीताः शुक्ला शेषानतादि कन्पेषु सर्व वेयकादिषु ||८४|| विमानकाः । केवलं शुक्ल वर्णा विमानप्रासादपङ्क्तयः । स्फुरद्रत्नांशु संघातैरुचोलित दिशाम्बराः ||८५॥ अर्थः- सौधर्मेशान इन दो स्वर्गों के एवं उनमें वह करे नीले, पीले श्री श्वेत अर्थात् पञ्च वर्ण वाले हैं ।। ८१ ॥ सनत्कुमार माहेन्द्र कल्प के विमान कृष्ण के विना धार वर्ण के अर्थात् नीले, लाल, पीले और श्वेत वर्ण के हैं ॥५२॥ ब्रह्मब्रह्मोत्तर-लांतन और कापिष्ट स्वर्ग के विमान एवं दिव्य प्रासाद पंक्तियाँ लाल, पीले और श्वेत इस प्रकार तीन वर्ण वाले हैं ||५३ || शुक्र - महाशुक्र, शतार और सहस्रार इन चार स्वर्गो के विमान पीत और शुक्ल वर्ण के हैं। इसके आगे शेष श्रान्त आदि कल्पों में, सर्व ग्रेयकों में, नव अनुदिशों में और पाँच अनुत्तरों में देदीप्यमान रत्नों की किरणों के समूह से नभमण्डलस्थ दिशाओं को प्रकाशित करने वाली विमान एवं प्रासाद पंक्तियाँ मात्र शुक्ल वर्ण की हैं ।।८३-८५ ।। [ ५२१ . सर्व श्रेणिविमानार्थ स्वयम्भूरमणोपरि । द्वीपान्धीनां ततोऽन्येषामर्धिषुपरिस्थितम् ॥ ८६ ॥ अब प्रथम इन्द्रक के एक दिशा सम्बन्धी श्रेणीबद्ध विमानों का श्रवस्थान कहते हैं: - श्रर्थः - सर्व श्र ेणीबद्ध ( ऋतु इन्द्रक की एक दिशा गत ६२ श्र ेणीबद्ध ) विमानों का प्र भाग (३१) स्वयम्भूरमण समुद्र के ऊपर अवस्थित है। तथा शेष प्र ( ३९ ) भाग का प्र अ भाग स्वयम्भूरमण समुद्र से अर्वाचीन द्वीप समुद्रों के ऊपर अवस्थित है || ६६ ॥ श्रस्यविस्तारमाहः I एकत्रिशछणीबद्ध विमानानि स्वयम्भूरमणाम्बुधेरुपरि तिष्ठन्ति । षोडश विमानानि स्वयम्भूद्वीपस्योपरि सन्ति । अष्टी विमानास्ततोऽभ्यन्तरस्थवारिधेरुपरिभवन्ति । चत्वारो विमानास्तदन्तः स्थित द्वीपस्योपरि स्युः । द्व े विमाने तदभ्यन्तरभागस्थाम्बुवेरुपरि तिष्ठतः । विमानंकमसंख्पद्वीपवार्धीनामुपरि तिष्ठति । ऋजु विमानं नरक्षेत्रस्योपरि तिष्ठेत् । अर्थ :- ऋतु इन्द्रक विमान की एक दिशा में ६२ श्रीबद्ध विमान हैं, इनके श्राधे (३१) बणीबद्ध विमान स्वयम्भूरमण समुद्र के उपरिम भाग में अवस्थित हैं । १६ श्रेणीबद्ध विमान

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