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पंचदशोऽधिकारः
[ ५६७ सभ्छ घास १६ पक्ष बाद होता है || २६३३॥ षष्ठ युगल में मानसिक श्राहार १८००० वर्ष बाद एवं उवास १८ प ( ६ माह ) बाद होता है || २६४ ।। सप्तम युगल में देवों का प्रहार २०००० वर्ष बाद एवं लघु उच्छ बास २० पक्ष ( १० माह बाद होता है ।१२६५।। अष्टम युगल में देवों का आहार २२००० वर्ष बाद एवं उच्छवास २२ पक्ष एवं ( ११ माह ) बाद होता है ।। २६६|| प्रथम वे स्थित महमिन्द्रों के मानसिक आहार २३००० वर्ष बाद एवं उच्छवास ११६ माह बाद होता है ।। २६७ ।। द्वितीय वेयक में श्राहार २४००० वर्ष बाद तथा उच्छवास एक वर्ष बाद होता है। ||२६|| तृतीय वेयक में देवों का प्रहार २५००० वर्ष बाद एवं राष्णुबारक वाट होता है ||२६|| चतुर्थ प्रदेयक में अहमिन्द्रों का श्राहार २६००० वर्ष बाद और सुगन्धित उच्छ् वास एक वर्ष १ माह बाद होता है || २७० || पंचम वेयक में अहमिन्द्रों का आहार २७००० वर्ष बाद एवं उच्छवास एक वर्ष १३ माह बाद होता है वैद्यक में प्राहार २८००० वर्ष बाद तथा उच्छवास एक वर्ष दो माह बाद होता है २७२ ।। सप्तम ग्रैवेयक में अमृतमय श्राहार २००० वर्ष बाद एवं उच्छ बास एक वर्ष २३ माह बाद होता है || २७३ || श्रष्टम ग्रैवेयक में श्रमृताहार ३०००० वर्ष बाद और किंचित् उच्छवास एक वर्ष ३ माह ( १४ वर्ष ) चाद होता है ||२७४॥ अन्तिम नवम वेयक में सुधाहार ३१००० वर्ष बाद एवं उच्छवास ३१ पक्ष प्रर्थात् एक वर्ष ३३ माह बाद होता है ।२७५॥ नव अनुदिशों में ग्रहमिन्द्रों का श्राहार ३२००० वर्ष बाद और उच्छ वास एक वर्ष ४ माह बाद होता है || २७६ || तथा पश्च अनुत्तरवासी ग्रहमिन्द्रों का आहार ३३००० वर्ष बाद एव उच्छ् वास ३३ पक्ष - एक वर्ष ४३ माह बाद होता है || २७७॥
।१२७१ ॥ षष्ठ
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श्रम लौकान्तिक देवों के अवस्थान का स्थान एवं उनकी संख्या का प्रतिपादन करते हैं:
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वसन्त ब्रह्मलोकान्ते ये लौकान्तिकनाकिनः ।
तेषां नामानि दिकू संख्या वक्ष्ये संक्षेपतः क्रमात् ॥ २७८ ॥
सारस्वतास्तथादित्या वह्नयोऽरुणसंज्ञकाः । ईशानादि विथि प्रकीर्णेषु वसन्त्यमी || २७६ ॥
प्राच्यादी गर्दतोयाश्च वसन्ति तुषितायाः । अव्यावाधास्ततोऽरिष्टाः श्रेणीबद्ध ष्वनुक्रमात् ॥ २८० ॥
द्विद्वयोः सप्तयुक् सप्तशतानि तु सहस्रकाः । ततो द्वयोर्द्वयोद्धि हो सहस्रो द्वयाधिकौ ॥२८१ ॥