________________
षोडशोऽधिकाश
[ ५६३ अर्थ:-सौधर्म युगल का घनफल १६३ घन राजू प्रमाण है । दूसरे युगल का ३७१ घनराजू, ब्रह्मादि यो चुगों का पनपा ६५-३ , शुक्र-महाशुक्र युगल का १४६ घन राजू, शतार युगल का १२२ घन राजू, प्रानत-प्राणत स्वर्ग का १०३ राजू, प्रारण-अच्युत युगल का धन लाजू तथा ग्रेवेयकों से लेकर लोक के अन्त पर्यन्त का धनफल ११ धन राजू प्रमाण है। इस प्रकार ऊध्वं लोफ का सर्व घनफल ( १६३+३७३+३३+१४+१२३+१०+ +११=)१४७ घन राजू प्रमाण है, और तीनों लोकों का एकत्र धन फल ( १६६ + १४७) = ३४३ धन राजू प्रमाण है ।।२१-२५॥
विशेष:---ऊर्ध्व और अधोलोक के घनफल में ही मध्यलोक गभित है । यह लोक का ३४३ घनराजू घनफल वातवलयों सहित है। अब लोक और लोकोत्तर मानों का वर्णन करते हैं:--
अथ मानं प्रवक्ष्यामि नानाभदं जिनागमात् । व्यासोत्सेधादिसंख्या विधालोकस्य सर्वतः ।।२६।। मानं लौकिकलोकोत्तर मेवाभ्यां मतं विषा । लोकशास्त्रानुसारेण लौकिकं विविधं भवेत् ॥२७॥ एको दश शतं सस्मात्सहस्रमयुतं ततः।। लक्ष तथा प्रयुक्तं च कोटिदशगुणाः क्रमात् ॥२८॥ इत्यङ्को वर्धत युक्त्योतरोत्तराविसंख्यया । तथा प्रस्थतुलादीनि मानानि विविधानि च ।।२९।। कीर्तितानि बुधैर्लोके व्यवहारप्रसिद्धये । प्रत्यलोकोत्तरं मान चतुर्भेदमिति ७ वे ॥३०॥ मादिमं द्रव्यमानं च द्वितीय क्षेत्रमानकम् ।
तृतीयं कालमानं स्याच्चतुर्थ भावमानकम् ॥३१।। अर्थ:-अब मैं जिनागम से तीन प्रकार के लोक का व्यास, उत्सेध एवं पायाम प्रादि की संख्या का निरूपण करने के हेतु नाना प्रकार के मान को कहूँगा ॥२६।। लौकिक और लोकोत्तर के भेद से मान दो प्रकार का है । लोकशास्त्र के अनुसार ( लोक व्यवहार में ) लौकिक मान अनेक प्रकार का होता है ।।२७।। यह लौकिक मानक्रम से एक, दश, सौ, हजार, दश हजार, लाख, दस लाख करोड़ मोर दस करोड़ आदि अंकों के भेद से उत्तरोत्तर संख्या रूप से वृद्धिंगत होता जाता है। तथा लोकव्यवहार की सिद्धि के लिए विद्वानों द्वारा प्रस्थ एवं तुला आदि नाना प्रकार के मान कहे गये हैं।