Book Title: Siddhantasara Dipak
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 661
________________ षोडशोऽधिकार। [ ६१५ पन्थपर्यायन्त्रसमेत ४५१६ ॥ सम्बत् १७८६ वर्षे प्राषाढमासे कृष्णपक्षे तिथौ चतुर्दशी पानिवासरे। लिखितं मानमहात्मा चाटसु मध्ये ।। श्री मूलसंधे बलात्कारगरणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारकजी श्री जगतकीति तत्पट्टे भट्टारक श्रो.........."द्र कीर्तिजी भाचार्यजी बी कनककीतिजी तत् शिष्य पं० रायमल तत् शिष्य पं....................."दजी तत् शिष्य पं० वृन्द्रावनेन सुपठनाथ लिखापितं ॥ लिखितं............................................."ध्ये ॥ यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयताम् ॥१॥ भग्नपृष्टि कटिग्रीवा वा बद्धमुष्टिधोमुखम् । कष्टेन लिखित अन्यं यत्नेन परिपालयेत् ॥२॥ श्री ।। अर्थः—सिद्धान्त के सार से युक्त इस ग्रन्य में सब मिला कर ४५१६ श्लोक हैं, ऐसा विद्वानों । के द्वारा जानने योग्य है । अर्थात् जानना चाहिये ।।११।। इस प्रकार भट्टारक सकलकोति विरचित सिद्धान्तसार दीएक नाम महाग्रन्थ में पत्य आदि उपमा प्रमाणों का प्ररूपण करने वाला सोलहवां अधिकार समाप्त ॥

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