Book Title: Siddhantasara Dipak
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 630
________________ मिटान्तसार दोप अर्थ:-सम्यग्दर्शन को धारण करने वाली सौधर्म इन्द्र की महादेवी, सर्व दक्षिणेन्द्र, चारों लोकपाल, सर्व लोकान्तिक देव और सर्वार्थ सिद्धि के सर्व देव स्वर्म पर्याय से च्युत होकर उत्तम मनुष्य भव प्राप्त करते हैं और फिर उत्कृष्ट तप से विभूषित होते हुए नियम पूर्वक उसी भव से मोक्ष जाते हैं । ।३७७-३७८॥ ( सर्वार्थसिद्धि को छोड़ कर ) पञ्चपंचोत्तर और नव अनुदिश वासी देव स्वर्ग से च्युत होकर मारायण एवं प्रतिनारायण नहीं होते ॥३७६।। सर्व मनुष्य, सर्व तिरंञ्च और सर्व भवन त्रिकवासी देव अपनी अपनी पर्यायों से मरण कर देवों द्वारा पूजित शलाका पुरुषों में कभी भी उत्पन्न नहीं होते ॥३८ । विजयादि विमानों से च्युत होकर भूतल पर धाये हुए अहमिन्द्र मनुष्य के दो भव लेकर नियम से मोक्ष पद प्राप्त करते हैं ॥३१॥ अब स्वर्ग स्थित मिथ्यादृष्टि देवों के मरण चिह्न, उससे होने वाला प्रार्तध्यान और उस मार्सध्यान के फल का निरूपण करते हैं: यदावतिष्टतेऽल्पायुः शेष षण्मासगोचरम् । देवानां च तदा स्वाङ्गकान्तिगच्छति मन्वताम् ॥३८२॥ उरःस्थपुष्पसन्माला म्लानतां यान्ति दुविधेः । भणयो भूषणानां हि तेजसा मन्दतां तथा ॥३८३।। एतानि मृत्युचिह्नानि योक्ष्य कुदृष्टि निर्जराः। इति शोकं प्रकर्वन्तीष्टवियोगार्तमानसाः ॥३८४।। हा । ईदृशीर्जगत्सारा विमुच्य स्वर्गसम्पदः । नोऽयतारोऽशुभे निन्द्ये स्त्रीदुर्गर्भ भविष्यति ॥३८५।। अधोमुखेन तत्राहो ! गर्भे विष्टाकुमाकुले । दुस्सहा वेदना स्माभिः सोठव्या सुचिरं कथम् ॥३८६॥ इत्यार्तध्यानपापेन दिवश्च्युस्वा ष्टयः । भावनावित्रयस्थाश्च सौधर्मशानवासिनः ॥३८७॥ भवन्ति बादराः पर्याप्ताः पृथ्व्यप्कायिका भुवि । तथा वनस्पतिप्रत्येककायिकाः सुखातिगाः ।।३८८॥ मासहस्रारकल्पस्थाः केचित्प्रच्युत्य नाकतः । प्रार्तध्यानेन जायन्ते दु:खिनः कर्मभूमिषु ॥३६॥

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