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सिद्धान्तसार दीपक ॥ इति धो सिमान्तसार दीपक महानन्थे भट्टारक श्री सकलकोतिविरपिते
____स्वर्गाश्रूवलोक वर्णनोनाम पञ्चदशाधिकारः॥ अर्थ:-जो तीर्थकर देव यहाँ धर्म के सृजन करने वाले थे, वे धर्म से ही मोक्ष गये हैं । उन सबको, धर्म में स्थित प्राचार्य, उपाध्याय एवं साधुनों को, स्वर्ग मावि में स्थित धर्म के साधनभूत उप्सम जिनमन्दिरों को पौर लोक में जितनी भी तीर्थकर आदि की प्रतिमाएं हैं, उन सबको मैं प्रतिदिन नमस्कार करता हूँ और उन सबकी स्तुति करता हूँ ॥४०॥
इस प्रकार भट्टारक सकलकीति विरचित सिद्धान्तसार दीपक नाम महाग्रन्थ में ऊर्ध्वलोक का प्ररूपण करने वाला
पन्द्रहवां अधिकार समात