Book Title: Siddhantasara Dipak
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain

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Page 614
________________ ५६८ ] सिद्धांतसार दीपक अर्थ:-ब्रह्मलोक के अन्त में जो लोकान्तिक देव निवास करते हैं उनके नाम, प्रवस्थान की दिशाएं एवं उनकी संख्या का प्रमाण मैं (प्राचार्य ) संक्षेप से किन्तु क्रमशः कहूंगा ।।२७८॥ सारस्वत, मादित्य, वह्नि और प्ररण नाम के लौकान्तिक देव क्रमशः ईशान, प्राग्नेय, नैऋत्य एवं वायव्य विदिशाओं में स्थित प्रकोणक विमानों में रहते हैं ।।२७॥ सथा गर्दतोय, तुषित, मव्याबाध एवं अरिष्ट नाम के लोकान्तिक देव क्रमश: पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा गत श्रेणोबद्ध विमानों में रहते हैं ।।२८०।। इनमें से सारस्वत देवों का प्रमाण ७०७, प्रादित्य लोकान्तिकों का ७०७, वह्नि देवों का ७००७ तथा प्रण लौकान्तिक देवों का प्रमाण ७००७ है । इसके आगे क्रमशः दो-दो हजार दो की वृद्धि होती गई है । यथागर्वतोय लोकान्तिकों का प्रमाण ६०.६, तुषितों का ६०.६, अन्याबाघ देवों का ११००११ एवं औरष्ट नामक लोकातिक यों का प्रभास ११००११ है ।।२८१।। अब सारस्वतादि दो दो कुलों के अन्तरालों में स्थित लोकान्तिक देवों के कुलों के नाम एवं उनकी संख्या के प्रमाण का दिग्दर्शन कराते हैं:-- अग्निसूर्येन्दु सत्याभादेवाः श्रेयस्कराभिधाः । क्षेमरा बशिष्ठाख्या देवाः कामषराख्यकाः ।।२८२॥ निर्वाणरजसो नाम्ना दिगन्तरकृतोऽमराः। प्रारमरक्षकनामानः सर्वरक्षान बायवः ॥२३॥ बसवोडाचाह्वया विश्वाः षोडशैते सुराः क्रमात् । द्वौ द्वौ सारस्वताबोनां तिष्टतश्चान्तराष्टसु ॥२४॥ संख्यामीषां पृथक सप्ताधिक सप्तसहस्रकाः । ततो ह्यग्रे सहस्र द्वे प्रवर्धते क्रमात पृथक् ॥२८॥ चतुर्लक्षास्तथा सप्तसहस्राश्च शताष्टकम् । विशतिमलिता एते सर्वे लोकान्तिकामताः ॥२६॥ अर्थ:-अग्न्याभ, सूर्याभ, चन्द्राभ, सत्याभ, श्रेयस्कर, क्षेमङ्कर, वशिष्ट, कामघर, निर्वाण रजस्, दिगन्तरक्षक, प्रात्मरक्षक, सर्वरक्षक, मरुत्, वसव, अश्व एवं विश्व नाम के ये सोलह प्रकार के लौकान्तिक देव क्रमश: सारस्वतादि दो दो देवों के अन्तरालों में रहते हैं ॥२८२-२८४।। इनमें से मान्याभ देवों की संख्या ७००७ प्रमाण है । इसके आगे पृथक् पृथक क्रमशः २००२ की वृद्धि होती गई है । इस प्रकार सब लोकान्तिकों को एकत्रित संख्या ४०७६२० प्रमाण मानी गई है ।।२८५-२६६।।

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