________________
५२२ ]
सिद्धान्तसार दीपक स्वयम्भूरमण द्वीप के ऊपर स्थित हैं । ८ श्रेणीबद्ध स्वयम्भूरमणद्वीप के अभ्यन्तर भाग में स्थित अहीन्द्रवर समुद्र के ऊपर अवस्थित हैं। ४ श्रेणीबद्ध उस समुद्र के अभ्यन्तर भाग में स्थित अहीन्द्रया द्वीप के ऊपर हैं। दो श्रेणीबद्ध अहोन्त्रवर द्वीप के अभ्यन्तर भाग में स्थित देववर समुद्र के ऊपर हैं, और अवशेष एक श्रेणीबद्ध विमान [ देववर द्वीप से लेकर बाह्यपुष्कराध द्वीप पर्यन्त ] असंख्यात द्वीप-समुद्रों के ऊपर अवस्थित है, तथा प्रथम ऋतु इन्द्रक विमान मनुष्य क्षेत्र अर्थात् जम्बूद्वीप, लबरण समुद्र, धातकी खण्ड, कालोदधि समुद्र और मानुषोत्तर के पूर्व प्रघं पुष्कर वर दीप के ऊपर अवस्थित है यथा--
स्वयं. समुद्र
के ऊपर
] स्वयं. दीप
।के ऊपर
ग्रहीन्द्रवर समुद्र प्रहीन्द्रवर द्वीप ] देववर समुद्र । प्रसंख्यात र क्षेत्र-प्रदाई | केसपर । के ऊपर
के ऊपर
| द्वीप+समुद्र । बीप के ऊ.
३१ घेणीबद्ध | १६ श्रेणीबद्ध | ८ श्रेणीबद्ध | ४ श्रेणीबद्ध | दो श्रेणोबस | १ श्रेणीबद्ध | ऋतु इन्द्रक
प्रब दक्षिोन्द्र और उत्तरेन्द्र के इन्द्रक, श्रेणीबद्ध एवं प्रकीर्णक विमानों का । विभाग दर्शाते हैं:--
- स्वामी च दक्षिणाशायाः पूर्वपश्चिमयोविंशोः । श्रेणीबद्ध विमानेषु ह्यग्निनैऋत्यकोणयोः ।।७।। प्रकीर्णकविमानेषु सौधर्मेन्द्रो महान भवेत् । सर्वेषु पटलेष्वेवं सौधर्मशान कल्पयोः ॥८॥ पतिरस्त्युत्तरश्रेण्या वायव्येशानयोदिशोः । श्रेणीबद्धप्रकोणेषु चैशानेन्द्रोऽमरावृतः ॥१६॥ इत्येवं स्याविमानानां स्वामित्वं च पृथक पृथक् । सनत्कुमारमाहेन्द्रकल्पनायकयोयोः ॥६॥ ब्रह्मन्द्राद्याश्चत्वारश्चतुर्युग्मेषु नायकाः | चतुःश्रोणिविविक सर्वविमानानां भवन्ति च ॥१॥