Book Title: Siddhantasara Dipak
Author(s): Bhattarak Sakalkirti, Chetanprakash Patni
Publisher: Ladmal Jain
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नव स्थानों में सामानिक-तनुरक्षक-सातों प्रनीक-एवं तीनों परिषदों का प्रमाण
सामानिक
अनीक सैनामों का प्रमाण
परिषदों का प्रमाण
नव स्थान
| देवों का
| तनरक्षक देवों का प्रभारण बनों को
एक प्रनीक की | सातों अनोकों की अभ्यन्तर| मध्य ! बाह्य सम्पूर्ण संख्या । सम्पूर्ण संख्या परिषद् । परि० परित
प्रथम कक्ष में
प्रमाण
सौधर्म
| २४..
(प्रथम कक्ष की सख्या से १२७
गुणी है।) ३३६००० [तीन ला,३६६.] | ८४000 १०६६८०००
३२००००[३ ला. २० ह.] | 50000 १०१६०००० | २८००० [२ ला. ८८ ह.] |७२०००, ८१४४०००
७४६७६००० | १२०००/ १४००० | १६०००
२. ईशान
७११२००००
१००००/१२०००
१४०००
पंचदशोऽधिकार।
सानत्कुमार
७२०००
६४००5000
5000
१००००
१२०००
४ माहेन्द्र
७००००
२८०००० [२ ला. ८० ह.] ७००००
८८६००००
६२२३००००
। ६०००
5000
१००००
५. ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर | ६००००
५३३४००००
|४०००
| ६०००
5000
२४००००[२ ला. ४० इ.] | ६०००० / ७६२०००० २०००00 [ दो साख ५0000 ! ६३५0000
६ लान्सन-कापिष्ट
५००००
४४५००००
२०००
४०००
६०००
७ शुक्र-महाशुक्र
४००००
३५५६००००
१००० | २००० |1000
घातार-सहस्रार
३००००
१६०००० [१ ला. ६० ह.] | 10000, ५०८0000 १२०००० [१ ला, २० ह.] | ३०००० | ३८१०००० 50000 [ ८० हजार ] २०००० | २५४००००
२६६७००००
00
| १०००
२०००
आनतादि चार | २००००
१७७८0000
२५०
।
१०००
[ ५३६

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