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पंचदशोऽधिकार:
[ ५३३
गद्य का अर्थ:--
देवों के गृहों का
लम्बाई
उत्सेध
चोराई -
चोडाई
क्रमांक
स्थान
योजनों में |
मीलों में | योजनों में | मीलों में | योजनों में | मीलों में
सौषमैं शान
४६००
४८०
सानत्कुल-माहेन्द्र ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर
३६०
लान्तष-वापिष्ट
३२००
३२०
|
२८०
तार-सहस्रार
२४००
PYA
मानतादि चार
२०००
२००
अधो अवेयक
१६०
मध्य
।
१२००
उपरिम,
८०
४००
१२
अनुदिशा अनुत्तर
। २२ । २० अन इन्द्र के नगर सम्बन्धी प्राकारों की संख्या और उनके पारस्परिक अन्तर का प्रमाण कहते हैं:--
इन्द्र क्रीडानियासस्य प्राकारात्प्रथमावहिः । प्राविशालसमन्यासोत्सेधाश्चत्वार जिताः ॥१३२।। महान्तोऽन्ये च विद्यन्ते प्राकारा अन्तरान्तरे । प्राकारस्याधिमस्येव योजनानां फिलान्तरम् ॥१३३॥