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'चतुर्दशोऽधिकार
[ ४६E अब ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट और जघन्य प्रायु का कथन करते हैं :
लक्षवर्षाधिक पल्यमायुश्चन्द्रस्य कौतितम् ।। सहस्रवर्षसंयुक्त पल्यं सूर्यस्य जीवितम् ॥११॥ शुक्रस्यायुश्च पल्पक शतवर्षाधिक मतम् । बृहस्पतेश्च पल्यैकमखण्डं जीवितम् भवेत् ॥११६॥ मङ्गलस्य बुधस्यापि शनैश्चरस्य जोचितम् । स्यात्प्रत्येकं च पल्या तारकारणां तथोत्तमम् ॥११७॥ प्रायुः पन्यचतुर्थाशः सर्वजघन्यमेव तत् ।
पन्ौकस्पाष्टमोभागः सर्वनोचामृताशिनाम् ॥११॥ अर्थ:-चन्द्रमा को उत्कृष्ट प्रायु एक पल्य और एक लाख वर्ष, सूर्य को एक पल्य और एक हजार वर्ष, शुक्र की एक पल्य और १०० वर्ष तथा बृहस्पति की उत्कृष्ट प्रायु एक पल्य प्रमाण है। ॥११५-११६॥ मङ्गल, बुध और शनिश्चर में प्रत्येक की उत्कृष्ट प्रायु अर्ध-मध पल्य प्रमाण है। तारागणों को उत्कृष्ट मायु पाव (1) पल्य है । सूर्यादि ग्रहों की जघय प्रायु पाब 11) पल्य प्रमाण है । सर्व नीच देवों की आयु पल्य के प्राठवें भाग अर्थात् पल्य प्रमाण होती है ॥११७-११८।।।
अब सूर्यचन्द्र की पट्टदेवियों एवं परिवार देविय की संख्या कह कर देवियों को प्रायु का प्रमाण बतलाते हैं :--
चन्द्रप्रभा सुसीमाल्या प्रभावयचिमालिनी । चन्द्रस्येमाश्चतस्रः स्युर्महादेच्यो ममःप्रिया ॥११॥ देवी इन्द्रप्रभा सूर्यप्रभाघनकराह्वया । तथाचिमालिनी भानोश्चतस्रो बल्लभा इमाः ॥१२०॥ प्रासामष्टमहादेवीनां प्रत्येकं पृथक पृथक् । देव्यो द्वि द्वि सहस्राणि स्युः परिवारसंज्ञिकाः ॥१२।। स्वकीयानां स्वकीयानां देवानामायुरस्ति यत् ।
तस्याधं स्थस्वदेवीनां ज्योतिष्काणां च जीवितम् ॥१२२॥ अर्थ:-चन्द्रप्रभा, सुसीमा, प्रभावतो और अचिमालनी ये चारों मन को प्रिय लगने वाली चन्द्रमा को महादेवियाँ हैं ॥११६॥ इन्द्रप्रभा, सूर्यप्रभा, घनकरा ( प्रभङ्करा ) और अचिमालनी ये चार महादेवियों सूर्य की है ।। १२० ॥ इन पाठों महादेवियों में से प्रत्येक महादेवी को पृथक् पृथक् दो दो