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सिद्धान्तसार दीपक
हजार परिवार देवियाँ हैं ।। १२१ ॥ पाँचों ज्योतिष देवों के समुदाय में अपने अपने देवों की आयु का जो प्रमाण है, उनकी देवियों की आयु का प्रमारण उनसे (अपने अपने देवों से ) आधा श्राधा है ।। १२२सा अब ज्योतिष्क देवों के अवधिक्षेत्र और भवनत्रिक देवों के गमन क्षेत्र का कथन करते हैं:
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संख्यातीतसहस्राणि योजनानां परोऽवधिः । ज्योतिष्काणां जघन्यश्च तिर्यक् संख्यातयोजनः ।। १२३ ।। कियन्मानोऽवधिस्तेषामधोलोकेऽपि जायते ।
भावना व्यन्तरा ज्योतिष्का गच्छन्ति स्वयं क्वचित् ॥ १२४ ॥ तृतीय क्षितिपर्यन्तमधोलोके स्वकार्यतः । सौधर्मेशान कल्पान्तमूर्ध्वलोके निजेच्छया ।। १२५ ।।
तेऽपि सर्वे सुरैनीता भाववाद्यास्त्रयोऽमराः । षोडशवर्गपर्यन्तं प्रीत्या यान्ति सुखासये ।। १२६॥
श्रर्यः - ज्योतिष्क देवों का उत्कृष्ट श्रवधि क्षेत्र श्रसंख्यात योजन प्रमाण है । तिर्यग् रूप से जघन्य क्षेत्र संख्यात योजन प्रमाण है और इन देवों का अधोलोक में भी कुछ मात्रा तक अवधि क्षेत्र है । भवनवासी, व्यन्तरवासी और ज्योतिषी देव अपने कार्य वशात् अधोलोक में तीसरी पृथ्वी पर्यन्त जाते हैं । ऊर्ध्वलोक में स्व इच्छा से तो सौधर्म -ऐशान स्वर्ग तक ही जाते हैं, किन्तु सुख प्राप्ति के लिए मित्र श्रादि अन्य महद्धिक देवों द्वारा प्रीति पूर्वक सोलह स्वर्ग पर्यन्त ले जाये जाते हैं ।।१२३ - १२६॥
अब ज्योतिष्क देवों के शरीर का उत्सेध, निःकृष्ट देवों की देवांगनाओं का प्रमाण और भवनश्रय में जन्म लेने वाले जीवों के प्राचरण का विवेचन करते हैं :---
समचा पतनूर से घः सर्वज्योतिः सुधाभुजाम् । सर्वनिकृष्टदेवानां स्युर्द्वात्रिंशस्त्रमाङ्गनाः ॥ १२७॥ उन्मार्गचारिणो येऽत्र बिराधितसुदर्शनाः । अकामनिर्जरायुक्ता बाला बालतपोऽन्विताः ॥१२८ || शिथिलाधमंचारित्रे मिथ्यासंयमधारिणः ।
पञ्चाग्निसाधने निष्ठाः सनिदानाश्च तापसाः ॥ १२६ ॥
अज्ञानक्लेशिनः शैवलिङ्गिनो ये नरादयः । भावनादि त्रयाणां ते यान्ति नीचगति श्रयम् ॥ १३० ॥