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सिद्धान्तसार दीपक
पुष्पक ये तीन इन्द्रक आनत प्राणत स्वर्गों के उपरिम भागों में तथा शातक, पारणा और अच्युत ये। तोन इन्द्रक पारण-प्रच्युत इन दो कल्पों में अवस्थित हैं ।।४३-४६it
सुदर्शनममोघाख्यं सुप्रबुद्ध यशोधरम् । सुमन्न सुविशालं तु सुमनस्काभिधानकम् ॥५०॥ सौमनस्काह्वयं प्रीतिङ्करमेते नवेन्द्रकाः । नवग्ने धेयकेन्वेव सन्त्युपर्युपरि क्रमात् ॥५१॥ प्राच्यामचित्रिमानं दक्षिणदिश्यचिमालिनी । वैरोचनमपाच्या चोत्तराशायां प्रभासकम् ।।५२।। प्राग्नेयदिशि सौमास्यं नैऋत्यां सौम्यरूपकम् । वायच्यामङ्कनामशानकोणे स्फाटिकाभिधम् ।।५३॥ एषां मध्येऽस्ति चादित्यमालिन्याख्य विमानकम् । विमानानि नवतानि स्युर्नवानुदिशाभिधे ।३५४।। विजयं पूर्व दिग्भागे वंजयन्तं च दक्षिणे। जयन्तं पश्चिमाशायामुत्तरेऽस्त्यपराजितम् ॥५५॥ अमीषां मध्यमागे स्यात्सर्वार्थसिद्धिनामकम् । एते पञ्चविमानाः स्युः पञ्चानुत्तरसंज्ञके ॥५६।।
अर्थ:-नव वेयकों में क्रमशः ऊपर ऊपर सुदर्शन, अमोघ, सुप्रबुद्ध, यशोधर, सुभद्र, सुविशाल, सुमनस, सौमनस और प्रीतिङ्कर नाम के ये नव इन्द्रक विमान हैं ॥५०-५१॥ नव अदिशों को पर्व दिशा में अचि विमान, दक्षिण में अचिमालिनी, पश्चिम में वैरोचन, उत्तर में प्रभास, आग्नेय दिशा में सौम, नंऋत्य में सौम्य रूप, वायव्य में अङ्क और ईशान कोण में स्फटिक नामक विमान हैं, इन पाठों विमानों के मध्य में प्रादित्य मालिनी नामक इन्द्रक विमान है। इस प्रकार नवअनुदिशों में नव विमान हैं ॥५२-५४|| पञ्चानुत्तर की पूर्व दिशा में विजय, दक्षिण में वैजयन्त, पश्चिम में जयन्त और उत्तर दिशा में अपराजित नामक विमान हैं। इन सबके मध्य में सर्वार्थसिद्धि नामक इन्द्रक विमान है । इस प्रकार पञ्चानुत्तर में पांच विमान हैं ॥५५-५६॥