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सिद्धान्तसार दोपक अब इन्द्रों का प्रमाण दर्शाते हैं :
चतुर्यामाधनाकानां धत्त्वारो वासवा पृथक् । चतुः स्वर्मध्ययुपमानां चत्वारः स्वर्गमायका ।।६।। चतुस्तदननाकानाभिन्द्राश्चत्वार अजिताः ।
इतीन्द्रसंख्यया कल्पाः कथ्यन्ते द्वादशागमे ॥७॥ अर्थ:-आदि के चार स्वर्गों के पृथक् पृथक् चार इन्द्र हैं । अर्थात् सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गों में से प्रत्येक में एक एक इन्द्र हैं। मध्य के चार मुगलों ( आठ स्वर्गों) के चार इन्द्र है। अर्थात् ब्रह्म, लान्तव, महाशुक और सहस्रार स्वर्गों में से प्रत्येक में एक एक इन्द्र है । ब्रह्मोतर, कापिष्ट, शुक्र और शतार स्वर्गों में इन्द्र नहीं हैं। शेष ऊपर के पानत, प्राणत, पारण और अच्युत में से प्रत्येक में एक एक इन्द्र है। इस प्रकार प्रागम में बारह इन्द्र और बारह ही कल्प कहे गये हैं ।६.७।। अब इन्द्रों के नाम और उनको दक्षिागेन्द्र संज्ञा प्रादि का विवेचन करते हैं:
सौधर्मेन्द्रायः शक्रः सनत्कुमारदेवराट् । ब्रह्मन्द्रो लान्तवेन्द्रश्चानतेन्द्र प्रारणाधिपः ॥८॥
षडेते दक्षिणेन्द्राः स्युननमेकावतारिणः । ... पूजितमहापुण्यजिनभक्तिभराङ्किताः ॥६॥ __ ईशानेन्द्रो हि माहेन्द्रः शुक्रेन्द्रः शुक्रनाकभाक् ।
शतारेन्द्रस्ततः प्राणतेन्द्रोऽच्युतेन्द्र उत्तमः ॥१०॥ एते षडुत्तरेन्द्राः स्युजिनपूजापरायणाः ।
सम्यग्दर्शनसंशुद्धाः समिरनतकमाः ॥११॥ अर्थ:--सौधर्म, सनत्कुमार, ब्रह्म, लान्तव, प्रानत और धारण नाम के ये छह इन्द्र दक्षिणेन्द्र हैं । ये छहों एक भवातारी, पूर्वोपार्जित महापुण्य से युक्त और जिनेन्द्र भगवान की अपूर्व भक्ति के रस से सहित होते हैं ॥८-६॥ सर्व देवों से नमस्कृत, सम्यग्दर्शन से शुद्ध और जिनेन्द्र की पूजा में तल्लीन रहने वाले ईशान, माहेन्द्र, शुक्र स्वर्ग का शुक्र, शतार प्राणत और अच्युत नाम के ये छह इन्द्र उत्तरेन्द्र हैं ॥१०-११॥ अब कम्प-कल्पातीत विमानों का और सिद्ध शिला का प्रवस्थान बतलाते हैं :
उपर्युपरि सन्त्येते स्वर्गाः षोडशसम्मिताः । दक्षिणोत्तरदिग्भागस्या युग्मरूपिणः शुभाः ॥१२॥ ..