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चतुर्दशोऽधिकारः
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मानुषोत्तर पर्वत से आगे बाह्य पुष्करार्ध द्वीप के प्रथम वलय की परिधि का प्रमाण १४५४६४७७ योजन है । उस वलय में चन्द्रों की संख्या १४४ और सूर्यो की संख्या भी १४४ है । एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र का और एक सूर्य से दूसरे सूर्य का अन्तर १०१०१७६४४ योजन है। दूसरे वलय की परिधि का प्रमाण १५१७८९३२ योजन है । चन्द्र संख्या १४८ और सूर्य संख्या १४८ है । एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र का अन्तर १०२५६० योजन है। तीसरे वलय की परिधि का प्रमाण १५०११३८८ योजन है। चन्द्र १५२ और सूर्य १५२ हैं । एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र का अन्तर १०४०२२ योजन और एक सूर्य से दूसरे सूर्य का अंतर १०४०२२ योजन है । चतुर्थं वलय की परिधि का प्रमाण १६४४३८४३ योजन है । इस वलय में चन्द्र संख्या १५६ और सूर्य संख्या १५६ है । एक चन्द्र से दूसरे चन्द्र का अन्तर १०५४०६ योजन एवं एक सूर्य से दूसरे सूर्य का अन्तर १०५४०६ योजन एक कोस प्रमाण है । इसी प्रकार की गणना से श्रागे के प्रसंख्यात वलयों में अवस्थित एक एक चन्द्र से दूसरे चन्द्रों के एवं एक एक सूर्यं से दूसरे सूर्यो के पत्र का प्रमाण निकान लेना चाहिए ।
प्रत्येक द्वीप समुद्रों में वलयों का प्रमाण पृथक् पृथक् कहते हैं :
पुष्कर द्वीप शेषार्थेऽह सन्ति वलयानि च ।
पुष्कराब्धौ क्रमेरव द्वात्रिंशद् वलयान्यपि ॥ ६६ ॥ वलया वारुणोद्वीपे चतुःषष्टिप्रमाणकाः । वरुणान्ध तथाष्टाविंशत्यग्रशतसंख्यकाः ॥८७॥
इत्येवं द्वीपसर्वेषु चासंख्येऽधिषु क्रमात् । द्विगुणा द्विगुणा ज्ञेया वलयासंख्य वर्जिताः ||८||
अर्थःई:-- बाह्य पुष्करार्धद्वीप में ८ वलय हैं। पुष्करवर समुद्र में ३२, वारुणीवर द्वीप में ६४
श्रीर वारसीवर समुद्र में १२८ वलय हैं। इसी प्रकार असंख्यात द्वीप समुद्रों में श्रसंख्यात वलय हैं, जिनका प्रमाण क्रमश: दुगुणा दुगुरणा जानना चाहिए ॥ ६६-६६।।
अब सूर्य चन्द्र के चार क्षेत्रों का प्रमाण, उनका विभाग एवं उनकी वोथियों का प्रमाण कहते हैं
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प्रचारक्षेत्रमेवैकं सूर्यस्य योजनानि च । सूर्यस्य विम्बयुक्त दशाग्रपञ्चशतान्यपि ॥८६॥ प्रचारक्षेत्रमिन्दोरण चन्द्रविम्बयुतं सुधि । योजनानां जिनोक्त दशाग्रपञ्चशतप्रमम् ॥६०॥