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चतुर्दशोऽधिकार
तेभ्यो हिमवाद्यद्रिवर्षेषु द्विगुणोत्तराः । भवन्ति तारका यावद्विदेहक्षेत्र मुसमम् ||५६ ॥
विदेहक्षेत्रतोऽर्धातास
।
ऐरावतान्तमेवाद्रि नीलाख्य रम्यकादिषु ||५७।।
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( जम्बूद्वीपस्थ भरतक्षेत्र से विदेह क्षेत्र पर्यन्त की शलाकाएँ क्रमशः दुगुनी दुगुनी होती गई हैं। और विदेह से आगे क्रमशः दुगुरण हीन होती गई है, तथा इन सर्व शलाकाओं का कुल योग ( १+२+ ४+८+१६+३२+ ६४ + ३२+१६+८+४+२+१ } = १६० है, इसलिए श्लोक मैं १६० का भाग देने को कहा गया है | )
अर्थः- छ्यासठ हजार नौ सौ पिचहत्तर कोड़ाकोड़ी तारागणों के प्रमाण को १६० से भाग देने पर जो एक भाग प्राप्त हो उतनी ताराएँ भरतक्षेत्र के ऊपर हैं, उनसे हिमवन् श्रादि कुलाचलों एवं विदेह पर्यंत के क्षेत्रों पर तारागणों का प्रमाण क्रमशः दुगुना दुगुना होता गया है, तथा विदेह क्षेत्र से, ऐरावत है अन्त में जिसके ऐसे रम्यक यादि क्षेत्रों पर और नील आदि कुलाचलों के ऊपर इन तारागणों का प्रमाण क्रमशः अर्ध अर्ध हीन होता गया है ।। ५५-५७ ।।
तारकाणां विवरणं क्रियते :
भरतक्षेत्रस्मोपरि ताराः सप्तशत पञ्चोत्तर कोटी कोट्यः भवन्ति । हिमवतः उपरिदशाधिक चतु दशशतकोटी कोट्यश्च हैमवतवर्षस्योपरि ताराः विशत्यग्राष्टाविंशतिकोटीकोटयः । महाहिमवतः उपरि पञ्चसहस्रषट्शतचत्वारिंशत्कोटो कोटघरच | हरिवर्षस्योपरितारा एकादश सहस्र द्विशताशोति कोटीकोट्यः निषधस्योपरि तारा द्वाविंशतिसहस्र पंचशतष्टिकोटी कोटयः । विदेहक्षेत्रस्योपरि ताराः पञ्चचत्वारिंशत्सहस्रक शतविशति कोटीकोटयः भवेयुः । नीलस्योपरि तारा द्वाविंशतिसहस्रपञ्चशतषष्टिकोटी कोटयः । रम्यकस्योपरि तारा एकादश सहस्रद्विशताशी तिकोटी कोट्यः सन्ति । रुक्मिरणः उपरिताराः पञ्चसहस्रषट्शतश्चत्वारिंशत्कोटी कोटयः सन्ति । हैरण्यवतस्योपरि द्विसहस्राष्टशतविंशति कोटीकोटयश्च । शिखरिणः उपरि एकसहस्र चतुःशतदशोत्तरकोटी कोटयश्च । ऐरावतस्योपरि ताराः पञ्चोतरसतशत कोटी कोट्यः सन्ति । एवं पिण्डीकृताः जम्बूद्वीपे सर्वे तारकाः एकलक्षत्रयस्त्रिशत्सहस्रनवशतपञ्चाशत्कोटो कोट्यो भवन्ति ।
( उपर्युक्त गद्य का अर्थ तालिका में अगले पृष्ठ पर दिया गया है ।)