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चतुर्दशोऽधिकार
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अष्टाविंशतिलक्षद्वादशसहस्र नवशतपञ्चाशत्कोटीकोटथः । पुष्कराद्वीपे चन्द्राः द्वासप्ततिः । भानवः द्वासप्ततिः 1 ग्रहाः षट्सहस्र त्रिशतषत्रिंशत् । नक्षत्राणि षोडशाग्रविशतिशतानि । ताराः श्रष्टचत्वारिंशल्लक्ष. द्वाविंशतिसहस्र द्विशतकोटी कोटधः सन्ति ।
अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों के ऊपर निवास करने वाले समस्त ज्योतिष्क देवों का प्रमाण भिन्न भिन्न दर्शाते हैं
नोट:- उपर्युक्त गद्य का अर्थ निम्नांकित तालिका में अवधारित किया गया है ।
द्वीप एवं समुद्रों
के नाम
क्रम
१
२
३
४
५
जम्बूद्वीप
-
लवण समुद्र
धातकीखण्डद्वीप
कालोबधि समुद्र
पुष्करार्थं द्वीप
योग
चन्द्र सूर्य
२ २
४
१२
४
४२
१२
१०५६
३६६६
७२ ७२ ६३३६
ग्रह
१७६
४२
३५२
१३२ १३२ ११६१६
नक्षत्र
५६
११२
३३६
११७६
२०१६
३६६६
तारागण
१३३९५० कोड़ाकोड़ी
२६७६००
६०३७००
२८१२६५०
४८२२२०० "
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विधोः शेषपरिवारसुराः सामान्यकादयः । अष्टभेदा हि पूर्वोक्ताः प्रतीन्द्रप्रमुखाः सदा ॥५६॥ त्रास्त्रिसुरैर्लोकपालविना भवन्ति च । सार्धद्वीप पङ्क्त्या ज्योतिर्देवा भ्रमन्त्यमी ॥६०॥ मानुषोत्तरतो बाह्यं तिष्ठन्ति ज्योतिषां गणाः । ये संख्यवजितास्तेषामचलत्वं भवेत्सदा ॥ ६१॥
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८८४०७०० कोड़ाकोड़ो
श्रव चन्द्रमा के अवशेष परिवार देवों के नाम, तृलोक में ज्योतिर्देवों का गमन क्रम और मानुषोत्तर के आगे ज्योतिदेवों को प्रवस्थिति कहते हैं
अर्थ:-- पूर्वोक्त दश भेदों में से त्रास्त्रिश और लोकपाल देवों के विना, प्रतीन्द्र है प्रमुख जिनमें ऐसे सामानिक आदि भाठ भेद वाले देव चन्द्र के अवशेष परिवार में होते हैं । अर्थात् ज्योतिष्क देवों