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सिद्धान्तसार दीपक अर्थ.-सभी इन्द्रों के प्रायस्त्रिश देव पृथक पृथक् तेतीस ही होते हैं। चमरेन्द्र की सभा में सामानिक देवों की संख्या ६४००० है । वैरोचन के ६००००, भूतानन्द के ५६००० और धरणानमा आदि अवशेष सत्रह इन्द्रों में से प्रत्येक इन्द्र के सामानिक देवों की संख्या ५०, ५० हजार प्रमाण है। ॥६८-७०।। चमरेन्द्र के अङ्गरक्षक देवों का प्रमाण दो लाख ५६ हजार, वैरोचन के दो लाख ४० हजार, भूतानन्द के दो लाख २४ हजार और धररणामन्द आदि सत्रह इन्द्रों के पृथक पृथक् दो, हो, लाख तनुरक्षक देव होते हैं ।।७१-७४।। प्रब पारिषद देवों की संख्या कहते हैं :--
चमराणसुरेशागण जान्तादिति स्फुटम् । भवन्ति परिषद्देधा अष्टाविंशसहस्रकाः ।।७।। मध्यपरिषवि प्रोक्ता स्त्रिशत्सहस्रनिर्जराः । बाह्य परिषदिद्वात्रिंशात्सहस्रामरा मताः ॥७६॥ वैरोचनस्य चान्तः परिषदि प्रोदिताः सुराः। पविशति सहस्राणि शक्राज्रिन समस्तकाः ।।७७।। मध्यपरिषदिल्यातास्तेष्टाविंशसहस्रकाः। बाह्य परिषदि प्रोक्तास्त्रिशत्सहस्र निर्जराः ।।७।। भूतानन्दस्य चान्तः परिषदि श्रीजिनोदिताः । प्राधन्त परिषद वाः षट्सहस्रप्रमाणकाः ।।७।। सुरा प्रष्टसहस्राः स्युर्मध्यपरिषदिस्थिताः । सहस्रदशगीर्वाणा बाह्यापरिषदिस्थिताः ।।८०॥ शेषाणां धरणानन्दादि सप्तदशभागिनाम् । चतुःसहस्रक्षेवाः पृथगन्तः परिषत्स्थिताः ॥१॥ षट्सहस्रप्रमा देवा मध्यपरिषदि स्मृताः । अष्टौ सहस्रगीर्वाणा बाह्मपरिषदि श्रिताः ॥८२।। अन्तः परिषदो देव समित्याख्योऽस्ति नायकः । मध्यापरिषदः स्वामी चन्द्रदेवोऽमरावृतः ।।३।। बाद्या परिषदो मुल्यो यदुनामामरोत्तमः । इत्युक्ता परिषत्संख्या शकारणामागमे जिनः ॥४॥