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द्वादशोऽधिकारः
[४४५ अब भूतानन्द की शेष अनीकों को एवं धरणानन्द की प्रथम अनीक की संख्या कहते हैं :--
षण्णामश्वादिसैन्यानां शेणाणां नौसमा मता। संख्या पृथक् पृथग् भूता नर्तक्यन्ता न संशयः ।।१०३॥ चतस्रः कोटयो लक्षाः सप्ताग्रनवतिप्रमाः। सहस्राश्चतुरग्राशीतिश्चैषां पिण्डिताखिला ॥१०४।। सतां संख्या मता सप्तसन्यानां श्रीजिनेशिना । पूर्वपुण्योदयोत्यानां भूतानन्दसुरेशिनः ॥१०५।। शेषसप्तदशानां धरणानन्दादिकात्मनाम् । अनीके प्रथमे नौप्रमुखानि बाहनानि च ॥१०६॥ प्रागुक्तानि पृथक पञ्चाशत्सहस्राणि सन्ति वै ।
तेभ्यः संख्यान्यसौन्यानां द्विगुरणा द्विगुणा पृथक् ॥१०७॥ अर्थ:--भूतानन्द इन्द्र की अश्व से लेकर नतंको पर्यन्त की शेष छह अनौकों का पृथक् पृथक् प्रमाण नाव के प्रमाण सदृश ही है, इसमें संशय नहीं ।। १०३ ॥ जिनेन्द्र भगवान् ने भूतानन्द इन्द्र के पूर्व पुण्योदय से उत्पन्न सातों अनीकों की एकत्रित संख्या चार करोड़ संतान्नवे लाख चौरासी हजार (४६७८४००० ) प्रमाण कही है ॥१०४-१०५॥ धरणानन्द आदि अवशेष सत्रह इन्द्रों के पूर्व कही गई नौ पृथक् पृथक् प्रमुख अनीकों की प्रथम कक्ष में वाहनों को संख्या पचास हजार प्रमाण है, इनसे आगे प्रागे अवशेष छह कक्षों में दूनी दुनी कही गई है ।।१०६-१०७।।
अमीषां विस्तरेण बालावबोधाय व्याख्यानं क्रियते :
घरणानन्दादि शेष सप्तदशेन्द्राणां नौगरुडादिप्रागुक्तवाहनानि क्रमात-प्रथमे अनीके पञ्चाशत्सहस्राणि । द्वितीये चकोलक्षः । तृतीये द्वौ लक्षौ । चतुर्थे चत्वारो लक्षाः । पञ्चमे ग्रष्टी लक्षाः । षष्ठे षोडशलक्षाः । सप्तमे द्वात्रिशल्लक्षाणि नी गरुडादि वाहनानि सैन्ये भवन्ति । इमानि सर्वाति नौ प्रमुखवाहनानि सप्तानीकानां पिण्डीकृतानि प्रतिशत त्रिषष्टिलक्षपञ्चाशत्सहस्राणि भदेषुः । अब इनका पथक पथक प्रमाण कहते हैं :--
अर्थ:-धरणानन्द प्रादि अवशेष सत्रह इन्द्रों के पूर्व कहे हुये नाव, गरुड़ आदि वाहन क्रम से प्रथम अनीक के प्रथम कक्ष में ५० हजार, द्वितीय में एक लाख, तृतीय में दो लाख, चतुर्थ में ४ लाख, पंचम में ८ लाख, षष्ठ में १६ लाख और सनम में नाब एवं गरुड आदि वाहनों की संख्या ३२ लाख