________________
त्रयोदशोऽधिकार
[ ४५६ पूर्णभद्र ( इन्द्र ), शैलभद्र (प्रतीन्द्र ), मनोभद्र ( प्रतीन्द्र ), भद्रक, सुभद्रक, सर्वभद्र, मनुष्य, धनपाल, स्वरूपक, यक्षोत्तम और मनोहारी ये बारह प्रकार के यक्ष कुल के व्यन्तर देव हैं ।। १८-१६ ।। भीम (इन्द्र ), महाभीम ( इन्द्र ), विघ्नहारी ( प्रतीन्द्र), उदङ्ग (प्रतीन्द्र), राक्षस, महाराक्षस और ब्रह्मराक्षस ये सात प्रकार के राक्षस व्यन्तर देव हैं । स्वरूफ (इन्द्र), प्रतिरूप ( इन्द्र ), भूतोत्तम ( प्रतीन्द्र ), प्रतिभूत ( प्रतीन्द्र ), महाभूत, प्रच्छन्न और आकाशभूत ये सात प्रकार के भूत जाति के व्यन्तर देव हैं ॥२०-२२।। काल ( इन्द्र), महाकाल ( इन्द्र ), कूष्माण्ड ( प्रतीन्द्र), राक्षस ( प्रतोन्द्र ), यक्ष, सम्मोहक, तारक, अशुचि, शुचि, सताल, देह, महादेह, पूर्ण और प्रवचन ये चौदह प्रकार के पिशाच जाति के व्यन्तर देव हैं ।।२३-२४॥
अब प्रत्येक कुलों के इन्द्रों के नाम, प्रतीन्द्रों की संख्या और दो दो बल्लभिकानों के नाम कहते हैं :--
प्रायौ द्वौ द्वाविनाविन्द्रौ पूज्यावेकं फुलं प्रति । पृथग्भूतो प्रतीन्द्रौ च द्वौ द्वौ देवाचितौ परौ ॥२५॥ मायेन्द्रः किन्नरो नाम्ना किम्पुरुषो द्वितीयकः । ततः सत्पुरुषेन्द्रोऽय महापुरुषदेवराट् ॥२६॥ प्रतिकायो महाकायः शक्रो गीतरविस्ततः । मीतकीति समाख्यो माणिभद्रः पूर्णभद्रकः ॥२७॥ भीम इन्द्रो महाभीमः स्वरूपः प्रतिरूपकः । कालेन्द्रोऽथ महाकाल इमे षोडश बासवाः ।।२।। षोडशैव प्रतीन्द्राः स्युः षोडशाना सुरेशिनाम् । है तथा सहस्र स्युर्देव्यः प्रत्येकमूजिताः ॥२६॥ किन्नरस्या वंतसाख्या वेदो केतुमती भवेत् । शची किम्पुरुषस्यास्ति रतिसेना रतिप्रिया ॥३०॥ स्यातां सत्पुरुषेन्द्रस्य रोहिणी नवभोस्त्रियो । हरिता पुष्पवत्यौ स्तो महापुरुषनायिके ॥३१॥ अतिकायस्य चन्द्राणी भोगा भोगवती भवेत् । महाकायस्य देवो पानिन्दिता पुष्पगन्धिनी ॥३२॥ शची गीतरतीन्द्रस्य स्वरसेना सरस्वती । नन्दिनी प्रियदर्शा स्याद् गीतकीर्तेश्च वल्लभा ॥३३॥