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सिद्धान्तसार बीपक सप्तानीकगजाः सर्वे सरिस पिण्डीकृता सुषेः । पञ्चनिशस्चलक्षाणि षट्पञ्चाशत्सहलकाः ॥॥ इत्थं गणनया नेया ह्यश्वसंख्यागजप्रमा । तथारथाधनीकानि गजसंख्यासमानि च ॥१६॥ है कोटपो चाष्टचत्वारिंशल्लक्षाणि सहस्रकार। दूधधिका नवतिश्चेति संख्यासर्वाजिनमंता ॥६॥ पिण्डीकृताऽप्यनीकानां सप्तानां श्रीजिनागमे । सप्ससप्तप्रकाराणां गजादीनां सुरेशिनाम् ।।६८|| प्रकीर्णकाया देवा प्राभियोगिकसंज्ञकाः । फिस्विषिकास्त्रयोऽते झसंख्याता भवन्ति च IIEI प्रायस्त्रिासुरा लोकपालाः सन्ति न जातुचित् ।
ततोऽसित व्यन्तरेन्द्राणां परिवारोऽखिलोऽधा ॥१०॥ अर्थः-किन्नर, किम्परुष आदि प्रत्येक इन्द्र के परिवार में देवों से वेष्टित एक एक प्रतीन्द्र देव होते हैं । सामानिक देव चार (४०००) हजार मोर पंगरक्षक देव १६.००हमार होते हैं ॥८८-८९ अभ्यन्तर परिषद् के देव ८०० मध्यम परिषद के १००० और बाह्य परिषद् के देव १२०० होते हैं । प्रत्येक इन्द्र के हाथी, घोड़ा, उत्तु न रथ, वृषभ, पदाति, गन्धर्व और नर्तको ये सात अनीक सात सात कक्षाओं से युक्त होती हैं ॥६०-६२|| सातों अनीकों में से हाथियों की अनीक को प्रथम कक्ष में २८००० हाथी, द्वितीय में ५६००० हाथी होते हैं। इस प्रकार तृतीय कक्ष से सरम कक्ष पर्यन्त क्रम से दूने दुने संख्या प्रमाण हाथी होते हैं ।। ६.३-६४ ।। गणधर देवों के द्वारा सातों कक्षों के हाथियों का एकत्रित योग ३५५६००० कहा गया है | इसी प्रकार सातों कक्षों के घोड़ों की संख्या तथा रथ आदि शेष पांचों की संख्या गजों की संख्या के प्रमाण हो जानना चाहिए ।१६। जिनेंद्र भगवान के द्वारा सात सात कक्षाओं से युक्त सातौ अनीकों की सम्पूर्ण संख्या का योग ( ३५५६०००४७ )=२४८६२००० कहा गया है ||७|| जिनागम में सात सात कक्षाओं से युक्त गज आदि सातो अनौकों के देवों का एकत्रित २४८६२.०० योग प्रत्येक व्यन्तरेन्द्रों के पृथक पृथक् कहा गया है ।।९।। प्रत्येक इन्द्र के परिवार में प्रकोणक, प्राभियोगिक और किल्यि षिक नामक तीनों प्रकार के देव प्रसंख्याते होते हैं। व्यतरेन्द्रों के परिवार में प्रायसिंवश भौर लोकपाल देव कभी नहीं होते, इसलिये इन सभी इन्द्रों का परिवार प्रतीन्द्र, सामानिक, अंगरक्षक, पारिषद्, अनीक, प्रकीर्णक, भाभियोगिक और किल्विष के भेद से आठ प्रकार का होता है १६६-१.०॥