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सिद्धान्तसार दोपक अर्थः-समस्त भवनों, नगरों एवं पावासों में, अबो, मध्य और ऊर्ध्व लोकों में. सर्व सुदर्शन मेरु प्रादि पर्वतों पर तथा अत्यन्त शोभा युक्त चैत्य प्रादि वृक्षों पर स्थित भव युक्त जितने जिन मन्दिर हैं, उन मन्दिरों में स्थित कल्याण और सुख को उत्पन्न करने के लिये माता के सदृश जो जिन प्रतिमाएँ हैं, उन सबका मैं मुक्ति प्राप्ति के लिये स्तवन करता हूँ, वन्दना करता हूँ ॥१२२॥
इस प्रकार भट्टारक सकलकीर्ति विरचित सिद्धान्तसार दीपक नाम महामन्य में आठ प्रकार के भेद वाले व्यन्तर देवों की
स्थिति प्रादि का प्ररूपण करने वाला
तेरहवां अधिकार समाप्त।