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द्वादशोऽधिकारः
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अर्थः- मेक पर्वत के नीचे पृथ्वीतल पर नागकुमार शादि के द्वारा पूजित और भक्ति के भार से स्तुत्य जो जितेन्द्र भगवान् के मणिभय जिनालय हैं, तथा जो चैत्य वृक्षों पर स्थित पुष्य की निषि स्वरूप, दिव्य और प्रति सुभग जिन प्रतिमाएँ स्थित हैं उन समस्त प्रतिमानों की मैं सुख प्राप्ति के लिये भक्ति भाव से प्रहनिश वन्दना करता है और स्तुति करता हूँ ।। १७३॥
इस प्रकार भट्टारक सकलकोति विरचित सिद्धान्तसारदीपक नाम महाग्रन्थ में दश प्रकार के भवनवासी देवों
का वर्णन करने वाला
Great अधिकार समाप्त ॥