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सिद्धान्तसार दीपक
पल्यषोडश भागानामेकोभागोऽस्ति जीवितम् । तृतीयापरिषस्थानी गीर्वाणानामखण्डितम् ॥१५॥ द्वात्रिशद्विहताशानां पन्यस्यकांशजीवितम् । वैनतेयश्य चायाय परिषद्यमृताशिमाम् ॥१५६।। त्रिकोटिपूर्वमानायुर्वितीयायां च जीवितम् । द्विकोटिपूर्वमन्त्यायो कोटिपूर्वायुरिष्यते ॥१५७।। द्वीपादिशेषसम्मानां देवानां परिषद्यपि । प्रथमायां भवेदायु स्त्रिकोटिवर्णसम्मितम् ॥१५८।। द्वितीयायां सुराणां च द्विकोटिवर्षजोषितम् ।
तृतीयापरिषत्स्थानां कोटिवर्षायुरुत्तमम् ॥१५॥ अर्थः-चमरेन्द्र की प्रथम परिषदस्थ पारिषदों को उत्कृष्ट प्राय दाई (२१) पल्य, द्वितीय परिषद् के पारिषदों की आय दो पल्य को और तृतीय परिषद् के पारिषदों की प्रायु डेढ़ (१३) पल्य को होती है। वैरोचन इन्द्र की प्रथम परिषद् के पारिषदों को प्रायु तीन पल्य, द्वितीय परिषद् के पारिषदों की वाई पल्य और तृतीय परिषद् के पारिषदों की मायु दो पल्य प्रमाण है ।।१५१-१५३।। मागकुमार इन्द्र की प्रथम परिषद् के पारिषदों की प्रायु पल्य के प्राठवें भाम, द्वितीय परिषद के पारिषदों की प्राय पल्य के सोलहवें भाग और तृतीय सभा के देवों की आयु पल्य के बत्तीसवें भाग प्रमाण होती है। गरुणकुमार इन्द्र को प्रथम सभा के देवों की प्रायु तीन पूर्व कोटि को, द्वितीय सभा के देवों की दो पूर्व कोटि की और तृतीय सभा के देवों की एक पूर्व कोटि की प्रायु होती है ।। १५४-१५७ ॥ द्वीपकुमार आदि शेष सात इन्द्रों की प्रथम परिषद् के पारिषदों की प्रायु तीन करोड़ ( ३०००००००) वर्ष, द्वितीय परिषद् के पारिषदों की दो करोड़ (२०००००००) वर्ष और तृतीय परिषद् के पारिषदों को उत्कृष्ट प्रायु एक करोड़ ( १०००००००) वर्ष प्रमाणहोती है ।।१५५-१५६।।
प्रश्न असुरकुमार आदि इन्बों के शरीर को ऊंचाई, उच्छवास एवं प्राहार के क्रम का निरूपण करते हैं :--
प्रसुराणां तनुत्सेधश्चापानि पञ्चविंशतिः । नागादिनवशेषाणां यशचापोच्चविपहः ।।१६०॥ असुराणां हृवाहारो गते वर्षसहस्रके । उच्छ्वासः स्याद् गते पक्षे नागानां गरुशात्ममार ॥१६१॥