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द्वादशोऽधिकारः
सैन्यानां च पयार्ध साधिकं जीवितं मतम् । नागेन्द्रस्याङ्गरक्षाणां सेनामहत्तरात्मनाम् ॥१४६॥ पूर्वकोटिप्रमाणायः संग्यकानामखण्डितम् । वर्णकोटिप्रमं चायुस्ततोऽपि गरुडस्य वै ।। १४७ ।। अङ्गरक्षकसेनानांमहत्तराणां च जीवितम् । कोटिवर्णप्रमं सैन्यकानां लक्षाब्दजीवितम् ॥ १४८ ॥ शेषद्वीपादिसप्तानामङ्गमरक्षामृताशिनाम् । सेना महत्तराणां चायुर्लक्षवर्णमानकम् ॥१४६॥ अनीकाह्वयद्देवानामायुः खण्डविषजतम् । वर्षाणां प्रवरं पञ्चाशत्सहस्रप्रमाणकम् ॥ १५०॥
अर्थ :-- चमरेन्द्र के श्रङ्गरक्षकों और सेना महत्तरों की आयु एक पल्प प्रमाण तथा श्रनीक (सेना) देवों की या पल्य प्रमाण है || १४४ ॥ वैरोचन इन्द्र के अंगरक्षकों और सेना महत्तरों की श्रायु एक पल्य से कुछ अधिक तथा अनीक देवों की आयु अर्ध पल्य से कुछ अधिक है। नागकुमार इन्द्र के अंगरक्षकों और सेनामहत्तरों की आयु एक कोटि पूर्व की और श्रमीक देवों की कोटि वर्ष प्रमाण आयु है । गरुड़कुमार इन्द्रों के अंगरक्षकों श्रीर सेनामहत्तरों को ग्रायु कोटि वर्ष प्रमाण तथा सेन्यकों की एक लाख वर्ष प्रमाण है ।। १४५ १४८ ।। शेष द्वीपकुमार श्रादि सात इन्द्रों के अंगरक्षक देवों और सेना महत्तरों की उत्कृष्ट आयु एक लाख वर्ष प्रमाण तथा अनीक देवों की अपघात रहित उत्कृष्ट श्रायु पचास हजार (५०००० ) वर्ष प्रमाण है ।। १४६ - १५० ।।
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अव चमरेन्द्र श्रादि इन्द्रों के पारिषद देवों की आयु का निरूपण कहते हैं :--
चमरस्य सुराणामाध्धायां परिषदि स्फुटम् । सापन्यद्वयं चायुद्वितीयायां सुधाभुजाम् ॥ १५१ ॥ पल्यद्वयं तृतीयायां तत्सार्धपल्यसम्मितम् ।
रोचनस्य देवानामाद्यायां परिषद्यपि ।।१५२।। त्रिपन्यायुद्वितीयायां सार्धद्विवन्यजीवितम् । तृतीयायां सुराणां चायुद्वल्योपमं मतम् ।। १५३ ॥ नागस्य निर्जराणां प्रथमायां परिषद्यपि । श्रायः पन्याष्टमो भागो द्वितीयायां सुरात्मनाम् ॥ १५४ ॥ ।
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