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सिद्धांतसार दीपक लाख २० हजार और सप्तम अनीक में ३८ लाख ४० हजार महिष हैं। इन सातों अनीकों के एकत्रित महिषों का योग ७६ लाख २० हजार (७६२०.००) है ।
इत्थंभूता बुधे या समाना गणनाखिला। संख्या च शेषषण्णां हयश्वाधनीकात्मनां पृथक् ॥६॥ पञ्चकोटघस्त्रयस्त्रिशल्लक्षास्तथा सहस्रकाः । चत्वारिंशदिति ज्ञेया संख्या पिण्डोकृताखिला ॥१६॥ सप्तानां महिषादीनां सैन्यानां श्रीजिनागमे । पुण्योदयेन जातानां वैरोचनामरेशिनः ॥१०॥ भूतानन्दस्य नायः स्युरनीके प्रथमेऽपराः । षट्पञ्चाशत्सहस्राणि ताभ्यः क्रमेण पूर्ववत् ॥१०१॥ द्विगुणा द्विगुणा नायः शेषानीकेषु षट्स्वपि ।
सुखबोधाय चैतेषां पृथक् संख्या निगद्यते ॥१०२।। अर्थ:-इस प्रकार विद्वानों के द्वारा शेष अश्व प्रादि छह अनीकों की पृथक पृथक संख्या महिषों की संख्या के सदृश हो जानना चाहिये ||१८ जिनागम में वैरोचन इन्द्र के पुण्योदय से उत्पन्न होने वाले महिष प्रादि सातों अनीकों का एकत्रित प्रमाण पाँच करोड़ तेतीस लाख चालीस हजार ( ५.३.३४००००) जानना चाहिए ।।१-१००। भूतानन्द इन्द्र के प्रथम अनीक में ५६००० नाब हैं, इसके बाद अयशेष छह कक्षों में क्रम से यह संख्या दुनी दूनी होती गई है। सुख पूर्वक ज्ञान करने के लिये यह संख्या पृथक पृथक् कहते हैं ॥१०१-१०२।।
प्रय भूतानन्द को सातों अनीकों में नाव को संख्या पृथक् पृथक् कहते हैं :---
भूतानन्देन्द्रस्य प्रथमानीके नावः षट्पञ्चाशत्सहस्राणि । द्वितीयानोके चैकलक्षद्वादशसहस्राणि । तृतीये द्विलक्षचतुर्विंशतिसहस्राणि । चतुर्थे चतुर्लक्षाष्टचत्वारिंशत्सहस्राणि । पञ्चमे अष्टलक्षषण्णवतिसहस्राशि । षष्ठे सप्तदशलक्ष द्विनवतिसहस्राणि । सप्तमे सैन्ये नावः पञ्चनिशल्लक्षचतुरशीतिसहसारिण एताः सप्तानीकानां सर्वा नाव एकत्रीकृताः एकसातिलक्षद्वादमासहस्रागि भवन्ति ।
अर्थः-भूतानंद की प्रथम कक्ष अनीक की प्रथम कक्ष में ५६ हजार नाव हैं, द्वितीय में एक लाख बारह हजार, तृतीय में दो लाख २४ हजार, चतुर्थ में ४ लास्त्र ४८ हजार, पंचम में ८ लाख ६६ हजार, षष्ठ में १७ लाख ६२ हजार और सप्तम अनीक में ३५ लाख ५४ हजार नाव है। इन सातों कक्षों को सर्व नावों का एकत्रित योग ७१ लाख १२ हजार (७११२०००) है।