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सिद्धान्तसार दीपक पातालों के अधो भागों में स्वभाव से ही मात्र वायु है। मध्य के तृतीय भागों में जल और वायु है, तथा ऊपर के तृतीय भागों में मात्र जल है। जल कल्लोलों की वृद्धि और हानि में मात्र वायु हो कारण है, इसमें किञ्चित् भी संशय नहीं है ।।३४-३५।। जब अधस्तन भाग में स्थित वायु ऊपर की ओर पातो है, तब उस वायु से जल कल्लोलों में क्रमशः जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट वृद्धि होती है, किन्तु जब वह वायु पाताल के अभ्यन्तर भाग में प्रवेश करती है, तब जल कल्लोलों में सर्वत्र क्रमशः हानि होती जाती है ।।३७-३८t
उत्कृष्ट पाताल के विभाग का प्रमाण एवं उनमें स्थित बायु आदि का चित्रण निम्न प्रकार है। अन्य पातालों का भो इसी प्रकार जानना । केवल प्रमागा में अन्तर होगा, अन्य नहीं :
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जलवायु मित्र
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अब अमावस्या एवं पूर्णिमा को हानि वृद्धि रूप होने वाले जल के भूभ्यास प्रादि का प्रमाण कहते हैं :
बीचेर्यासो दमावस्यायां हिलक्षप्रमाणकः । योजनानां महीभागे शिखरे विस्तरस्तथा ॥३६॥ साधंत्रिशतयुक्तकोनसप्ततिसहस्रकाः । एकादशसहस्राण्युत्सेधो जघन्य एव च ॥४०॥