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दशमोऽधिकारः २०४२२१६ योजन प्रमाण और लघु गजदन्तों में प्रत्येक का भिन्न भिन्न व्यास १६२६११६ योजन प्रमाण कहा गया है ॥२२६-२३१।। ।
अब देवकुरु-उत्तरकुर के वाण तथा उभय विदेह, वक्षार पर्वत, विभंगा नवी और देवारण्य-भूतारण्य के व्यास का प्रमाण कहते हैं :--
लक्षाः सप्तदर्शवाथ सहस्राः सप्तसम्मिताः। शतानि सप्तसंख्यानि योजनानि चतुर्दश ।।२३२॥ इति प्रोक्तः पृथग्वाणो देवोत्तरकुरुद्वयोः । उत्कृष्टमोगभूम्योपच प्रत्येकं श्रीगणाधिपः ॥२३३॥ एकोननिशसहस्त्रास्तथासप्तशतानि च । चतुर्नवतिरेवकं गव्यूतमिति योजनैः ।।२३४।। प्रोक्तःपृथक् पृथक् व्यासो देशानां द्वि विदेहके । वक्षाराणां च विष्कम्भो द्विसहस्रायोजनः ॥२३५॥ शतानि पंचविस्तारो विभङ्गासरितां पृथक् । सर्वासां योजनानां च पूर्वपश्चिमभागयोः ॥२३६।। एकासशसहस्राणि योजनानां शतानि षट् ।
अष्टाशीतिरिति ध्यासो वेवभूतद्वघरण्ययोः ॥२३७।। अर्थ:-जिनेन्द्र भगवान के द्वारा उत्तरकुरु देवकुरु नामक उत्तम भोगभूमियों का भिन्न भिन्न धाण १७०७७१४ योजन प्रमाण कहा गया है ।।२३२-२३३॥ पूर्व विदेह एवं अपर विदेह का भिन्न भिन्न व्यास २६७६४ योजन १ कोस, वक्षार पर्वतों का व्यास २००० योजन और पूर्व-पश्चिम दोनों पुष्कराक़ में स्थित समस्त विभंगा नदियों का पृथक पृथक् ध्यास ५०० योजन प्रमाण दर्शाया गया है ।। २३४-२३६ ।। देवारण्य एवं भूतारण्य इन दोनों वनों का पृथक पृयक व्यास ११६८८ योजन प्रमाण है ।।२३७॥
प्रब यक्षार, देश, देवारण्य प्रादि वन तथा विभंगा नदियों के प्रायाम का और उस पायाम में हानि वृद्धि का प्रमाण कहते हैं :--
अक्षाराणां च देशानां देवाधरण्ययोर्द्वयोः । आयामः स विवेहस्य योऽर्षायामोऽप्यनेकधा ॥२३८॥ नदीव्यासोनितो वृद्धिह्रासयुक्तो मतः श्रुते । विभङ्गानां तथायामः कुण्डध्यासोनितो भवेत् ॥२३॥