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दशमोऽधिकारः
प्रस्मात् सिद्धिपदं गता प्रवपुषोऽनन्तास्त्रिधा साधव
स्तान सर्वात सुगुणैः स्तुपेऽहमनिशं वन्दे च तब्भूतये ॥४२५॥ इतिश्री सिद्धांतसारदीपकमहामन्थे भट्टारक श्रीसकलकोति विरचिते मध्यलोकवर्णनो नाम दशमोऽधिकारः ।
अर्थ:-इस उत्तम मध्यलोक में श्री जिनेन्द्र भगवान के जितने भी जिन मन्दिर हैं उन सबको, धर्म तीर्थ के अधिपति जहाँ से मोक्षपद को प्राप्त हुए हैं, ऐसे समस्त निर्माण क्षेत्रों को और सिद्ध पद प्राप्त करने वाले अनन्त आचार्य उपाध्याय और सर्व साधुनों को मैं उनके उत्तम गुणों के साथ साथ मोक्ष विभूति की प्राप्ति के लिए अहर्निश स्तुति करता हूँ, और नमस्कार करता हूँ॥४२५।।
इस प्रकार भट्टारक सकलकीति विरचित सिद्धान्तसारदीपक नाम महामन्य में मध्यलोक का वर्णन करने वाला
दशवाँ अधिकार समाप्त ।।