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सिद्धान्तसार दोपक अर्थ:-जिनागम में असाधारण ( प्रत्येक ) वनस्पतिकायिक और साधारण वनस्पतिकायिक के भेद से बनस्पति कायिक जीवों के संक्षेप से दो भेद कहे गये हैं ॥५३॥ इनमें से असाधारण अर्थात् प्रत्येक वनस्पति सप्रतिष्ठित ( साधारण सहित ) और अप्रतिष्ठित ( साधारण रहित ) के भेद से दो प्रकार को है । ( मिट्टी और ) जल आदि के सम्बन्ध से होने वाली सम्मूछेन जन्म वाली वनस्पतियां भी सप्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित के भेद से दो प्रकार की होती हैं। मूल, अग्न, पोर, कन्द, स्कन्ध और बीज से उत्पन्न होने वाले वनस्पतिकायिक जीव, तथा त्वक् पत्र, प्रवाल, पुष्प, फल, गुच्छा, गुल्म, बल्ली, तृण प्रौर पर्व आदि प्रत्येक के वनस्पति, वनस्पतिकाय, वनस्पतिकायिक और वनस्पति जीव ये चार भेद माने गये हैं ॥५४-५६॥
प्रमोषां सुखबोधाय व्याख्यानमाह !--
येषां मूलं प्रादुर्भवति ते आद्रं कहरिद्रादयः मूलजोवाः। येषामग्र प्ररोहति ते कोरन्टगल्लिकादयः अनजीवाः । येषां पोर प्रदेशः प्ररोहति ते इझुवेत्रादयः पोरजोवाः । येषां कन्ददेशः प्रादुर्भवति ते कदलिपिण्डालुकादयः कन्दजोवाः । येषां स्कन्धदेश: प्रारोहति ते शल्यको पालिभद्रपलाशादय: स्कन्धजौवाः । येषां क्षेत्रजलादि सामग्र या प्ररोहस्ते यथगोधूमादयः बोजजीवाः। त्वा वृक्षादि बहिबल्कलं सैवलं युतकादिकं । येषां पत्राण्येव भवन्ति न पुष्पाणि न फलानि तानि पाण्युच्यन्ते । पत्राणां पूर्वावस्था प्रबाल: स्यात् । यासां वनस्पतीनां पुष्पाण्येवं सन्ति न फलादीनि ताः पुष्पाणि निगद्यन्ते । येषां पुष्पेभ्यो विना फलानि जायन्ते ते द्रमाः फलानि कथ्यन्ते । गुच्छा: बहूनां समुदाया एककालोद्. भवाः । जातिमल्लिकादयः गुल्मानि । करज कन्यारिकादोनि वल्लीस्यान्मालत्यादिका । तृणानि नानाप्रकारामिण । पर्वग्रन्थिकयोमध्यवेत्रादि । __ अर्थः--इन वनसतियों के भेदों का सुख पूर्वक बोध प्राप्त करने को कहते हैं :
जिनको मूल से उत्पत्ति होती है, वे मूल' जोव हैं, जैसे :- अदरख, हल्दी प्रादि । जो अग्र ( टहनी ) से उत्पन्न होते हैं, वे अग्र जीव हैं। यथा-केतकी, गुलाब, आर्यका, मोगरा आदि । जो पर्व के प्रदेश ( गांठ ) से उत्पन्न होते हैं, वे पोर जीव हैं । यथा-ईख, वेत आदि । जो कन्द से उत्पन्न होते हैं, वे कन्द जीव हैं । यथा-सकरकन्दी, पिण्डालू ( सूरण ) आदि। जिनकी उत्पत्ति स्कन्ध से होती है, वे स्कन्ध जीब हैं, यथा-सल्लगी ( साल ), कट को, बड़, पीपल, पलाश, देवदारु आदि । जिन बीजों की भूमि एवं जल आदि सामग्री के सहयोग से उत्पत्ति होती है, वे बीज जीव हैं। यथा-जव, गेहूँ प्रादि । वृक्ष प्रादि को बाह्य छाल को त्वक और युतक ( काई ) आदि को सैवल कहते हैं। जिसमें केवल पत्ते ही होते हैं, पुष्प और फल नहीं होते, उसे पत्र वृक्ष कहते हैं । पत्तों की पूर्व अवस्था को प्रवाल कहते हैं । जिन वनस्पतियों में मात्र पुष होते हैं, फल आदि नहीं होते, उसे पुष्प वनस्पति कहते हैं। पुष्प के विना जिसमें केवल फल उत्पन्न होते हैं। उन्हें फल वृक्ष कहते हैं। एक समय में उत्पन्न