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एकादशोऽधिकारः
[ ४२३ नामौस्तनान्तरे योनौ कक्षायां च निसर्गतः । सूक्ष्मा नरा इमे स्त्रीणां जायन्ते दृष्यगोचराः॥१८६॥ शेषा ये गर्भजा माः पर्याप्तास्ते न चेतराः ।
अथ देवगतो वक्ष्येऽल्पबहुत्वं जिनागमात् ।।१६।। अर्थ:- मनुष्यगति में लवणोदधि और कालोदधि समद्रों में स्थित ६६ अन्तर्वीपों के मनुष्यों का प्रमाण एकत्रित करने पर भी वे सर्व स्तोक हैं । अन्तद्वीपों के मनुष्यों से पंचमेरु सम्बन्धी दश उत्कृष्ट भोगभूमियों के मनुष्य संख्यातगुणे हैं ॥१८१-१८२॥ उत्कृष्ट भोगभूमियों के मनुष्यों से पंचमेर सम्बन्धी हरि-रम्यक नगमक दश मध्यम भोगभूमियों के मनुष्य संख्यातगुणे हैं ।।१८३।। मध्यम भोगभूमियों से हैमवत हैरण्यवत नामक १० जघन्य भोगभूमियों के मनुष्य संख्यात्तगुणे हैं, और जघन्य भोगभूमियों के प्रमाण से पांच भरत, पंच ऐरावत नामक दश कर्मभूमियों में शुभ अशुभ कर्मों से युक्त मनुष्य संख्यातगुणे हैं ॥१८४-१८५३ कर्मभूमिज मनुष्यों के प्रमाण से पंचविदेह क्षेत्रों के मनुष्य संख्यातगणे हैं और विदेहस्थ मनुष्यों के प्रमाण से सम्मूर्छन मनुष्यों का प्रमाण असंख्यात गुणा है ।।१६।। जो श्रेणी के असंख्यात भागों में से एक भाग मात्र हैं। प्रागम में उस श्रेणी के असंख्यातवें भाग का प्रमाण असं. व्यात कोटाकोटी योजन क्षेत्र के जितने प्रदेश होते हैं, उतने प्रमाण कहा है अत: सम्मच्छंन जन्म वाले लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों का भी यही प्रमाण है 11 १८७-१८८ ।। दृष्टि अगोचर ये सूक्ष्म लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्य कर्मभूमिज स्त्रियों को नाभि, योनि, स्तन और कांख में स्वभावतः उत्पन्न होते हैं ॥१८६।। इन अपर्यापक मनुष्यों से अवशेष गर्भज मनुष्य पर्याप्त ही होते हैं, अपर्याप्तक नहीं । अब आगमानुसार देवगति में अल्पबहुत्व' कहते हैं ।।१६०।। अब देवगति अपेक्षा अपबहुत्व कहते हैं :--
विमानवासिनः स्तोकादेवा देव्यो भवन्ति च । तेभ्योऽसंख्यगुणाः सन्ति दशधा भावनामराः ॥१६१।। तेभ्योऽसंख्यगुणा देवा व्यन्तरा अष्टघा मताः ।
तेभ्यः पञ्चविधा ज्योतिष्काः संख्यातगुणाः स्मृताः ॥१२॥ अर्थः-देवगति में विमानवासी देव देत्रियों का प्रमाण सर्व स्तोक है। विमानवासी देवों के प्रमाण से दश प्रकार के भवनवासी देवों का प्रमाण असंख्यातगुणा है। भवनवासी देवों से आठ प्रकार के व्यन्तर देवों का प्रमाण असंख्यातमरणा है और ध्यन्तर देवों से पांच प्रकार के ज्योतिषी देवों का प्रमाण संख्यातगुणा है ॥१६१-१६२।।