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एकादशोऽधिकारः
[ ४१५ अर्थः-कर्णेन्द्रिय का प्राकार यव की नाली के सदृश, चक्षुरिन्द्रिय का प्राकार मसूर सहमा (गोल) घ्राणेन्द्रिय का आकार तिल के पुष्प सदृश और जिह्वा इन्द्रिय का आकार अर्ध चन्द्र सदृश कहा गया है ।।१४३-१४४।। स्पर्शनेन्द्रिय का आकार अनेक प्रकार का होता है क्योंकि समचतुरस्र आदि के भेदों से संस्थान छह प्रकार के होते हैं ।।१४।। प्रब इन्द्रियों के भेद प्रभेद कहने हैं :--
हल्यावविभेदाणामिन्द्रियं हिविध स्मृतम् । अन्तनिवृत्ति बाह्योपकरणाद्रव्यखं द्विधा ।।१४६।। लब्ध्युपयोग भेदाभ्यां द्विधा भावेन्द्रियं मतम् ।
अन्तरात्मप्रदेशोत्थं कर्मक्षयसमुद्भवम् ।।१४७॥ प्रीः-द्रव्येन्द्रियों और भावेन्द्रियों के भेद से इन्द्रियाँ दो प्रकार की होती हैं । इनमें अभ्यन्तर में रचना और बाह्य में उपकरणों के भेद से द्रव्येन्द्रियाँ दो प्रकार को तथा लब्धि एवं उपयोग के भेद से कर्मों के क्षयोपशम से प्रात्म प्रदेशों में उत्पन्न होने वाली भान्द्रियां भी दो प्रकार की हैं ।।१४६-१४७॥ अब पाँचों इन्द्रियों के विषयों का स्पर्श कहते हैं :--
पृथिव्यादिवनस्पत्यन्तकाक्षाणां मतः श्रुते । स्पर्शाख्यो विषयो लोके धनुःशतचतुष्टयम् ।।१४।। द्वीन्द्रियाणां भवेत्स्पर्शविषयो दूरतो भजन । स्पर्शारण विषयार्थान् धनुरष्टशतप्रमः ।।१४६।। विषयो रसनाख्योत्थश्चतुःषष्टि धनुः प्रमः । त्रीन्द्रियासमता स्पर्श विषयः स्पर्शन क्षमः ॥१५०।। स्पर्थािनां च चापानां स्यात्षोडशशतप्रमः । जिह्वाक्ष विषयश्चापशताष्टाविंशतिभवेत् ।।१५१॥ ब्राणाक्षविषयव्याप्तिधनुषां शतमानकः । चतुरिन्द्रियजीवानां विषयः स्पर्शनाक्षजः ।।१५२॥ द्वात्रिंशच्छतचापानि विषयो रसनाक्षजः । धनुषां द्विशते षट् पञ्चाशदनरसादिवित् ॥१५३।। प्राणाख्यविषयश्चापशतद्वयप्रमाणकः । विषयश्चक्षुरक्षोत्यो दूरार्थवर्शको भवेत् ।।१५४।।