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एकादशोऽधिकारः
[ ४०३ होने वाले बहुत के समुदाय को गुच्छा कहते हैं । मोगरा, मल्लिका प्रादि को गुल्म और करंज, कंथारी आदि को वल्जी कहते हैं । मालती सादिक नाना प्रकार के तृण हैं पर्व और ग्रन्थि के मध्य वैत आदि
प्रब साधारण वनस्पति कायिक जीवों के लक्षण प्रादि कहते हैं :--
एते प्रत्येककायाः स्युः केचिच्चानन्तकायिकाः । कोचिबीजोद्भवाः केचित् सम्मूच्छिका हि देहिनः ॥७॥ नित्येतरनिकोताम्यां द्विधा साधारणामताः । अनन्तकायिका जीवा अनन्तकाक्ष संकुलाः ॥५८।। यत्रकोम्रियते प्राणी तवानन्सजन्मिनाम् । मरणं चककालेन तत्सम यककायतः ॥५६॥ यत्रैको जायते जीवस्तत्रोत्पत्तिभवेत्स्फुटम् । अनन्तदेहिनां साधं तेन तत्क्षणमञ्जसा ॥६॥ ततस्तेऽनन्तजीवात्ताः प्रोक्ता अनन्तकायिकाः । युगपन्मरणोत्पत्तेरनन्तै केन्द्रियात्मनाम् ॥६१।। तोमिथ्यादियुक्त यमद्भिर्दुर्भयाटवीम् । अनन्तां प्राणिभिर्घोरदुःकर्मग्रसितात्मभिः ।।६२।। अनन्तकायवर्गेषु न त्रसत्वं कदाचन । प्राप्त तेऽनन्तकायात्ताः मता नियनकोतकाः ।।६३।। अनन्तकायिका एते पञ्चभेदामता इति ।
जम्बूद्वीपादि दृष्टान्तः स्कन्धा डरादयो जिनः ।।६४।। अर्थः—ये पूर्व कथित जीव प्रत्येक काय हैं, इनमें कोई कोई अनन्तकाय हैं, कोई बोज से उत्पन्न होने वाले हैं, और कोई जोव सम्मूच्र्छन जन्म वाले हैं ।। ५७।। साधारणवनस्पति कायिक जीवों के नित्य निगोद और इतरनिगोद ये दो भेद हैं। ये अनन्तकायिक अर्थात् साधारण प्रनन्त एकेन्द्रिय जीव एक साथ (संकुला) बंधे हुये हैं ।। ५८ ।। साधारण जीवों में जहां एक जोव का मरण होता है, वहाँ एक काय होने से एक ही समय में एक साथ अनन्त जीवों का मरण होता है, और जहाँ एक जीव उत्पन्न होता है, वहीं उसी क्षण एक साथ अनन्त जीव जन्म लेते हैं 11५६-६०॥ इन अनन्त एकेन्द्रिय जीवों का एक ही साथ मरण और एक ही साथ जन्म होता है, इसीलिए उन अनन्त जीवों के समूह को अनन्तकायिक कहते हैं ।।६।। जो तोष मिथ्यात्व प्रादि से युक्त और घोर दुःकर्मों से ग्रसित हैं, ऐसे अनन्ता