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दशमोऽधिकारः
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नोट: -- उपर्युक्त समस्त गद्य का अर्थ निम्नलिखित तालिका में समाहित किया गया है।
पुष्करार्घद्वीप में स्थित भरतादि सात क्षेत्रों का अभ्यन्तर, मध्य और बाह्य विष्कम्भ :
क्रमांक ! क्षेत्र-नाम }
१
भरत
२
३
४
५
६
७
हैमवत
हरि
विदेह
रम्यक
हैरण्यवत
अभ्यन्तर वि०
४१५७६ योजन
१६६३१९३३
६६५२७६३१ई
२६६११०७३
६६५२७६३५ई
לג
ऐरावत ४१५७६३३
"
It
३)
१६६३१९३परे 21
"
मध्य विष्कम्भ
५३५१२३१६ योजन
गजदन्तों का व्यास आदि कहते हैं :
२१४०५१२१२
८५६२०७२ श
३४२४८२८५५२
८५६२०७६त्र
५३५१२३
11
"
"
13
33
बाह्य विष्कम्भ ६५४४६६५२
२६१७८४६
१०४७१३६३१
४१८८५४७३३३
१०४७१३६
योजन
६५४४६५५३
12
२०८ ५३५३ "
12
चतुःसहस्रदीर्घो द्विसहस्रविस्तृतो ब्रहः ।
पद्मः पद्यान्महापद्म द्विगुणो योजनः स्मृतः ॥ २२० ॥ महापद्मात् तिमिञ्छोऽपि द्विगुणायामविस्तृतः । तुल्या एभिस्त्रिभिः शेषाः क्रमह्रस्वाः त्रयो हृदाः ॥२२१॥ गंगा सिध्वोश्च विष्कम्भः पञ्चविंशति संख्यकः । श्रावावन्तेऽत्र सार्धंद्विशतयोजनसंख्यथा ॥२२२॥ श्राभ्यां द्वे द्वे महानद्यो विदेहान्तं प्रवधिते । द्विगुणद्विगुणण्यासह पमानास्तथापराः ।।२२३॥
11
२६१७८४१ "
ब पुष्करार्धस्थ पद्म प्रावि सरोवरों, गंगादि नदियों, कुण्डों, भद्रशाल वनों एवं
トラ