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________________ दशमोऽधिकारः [ ३६१ नोट: -- उपर्युक्त समस्त गद्य का अर्थ निम्नलिखित तालिका में समाहित किया गया है। पुष्करार्घद्वीप में स्थित भरतादि सात क्षेत्रों का अभ्यन्तर, मध्य और बाह्य विष्कम्भ : क्रमांक ! क्षेत्र-नाम } १ भरत २ ३ ४ ५ ६ ७ हैमवत हरि विदेह रम्यक हैरण्यवत अभ्यन्तर वि० ४१५७६ योजन १६६३१९३३ ६६५२७६३१ई २६६११०७३ ६६५२७६३५ई לג ऐरावत ४१५७६३३ " It ३) १६६३१९३परे 21 " मध्य विष्कम्भ ५३५१२३१६ योजन गजदन्तों का व्यास आदि कहते हैं : २१४०५१२१२ ८५६२०७२ श ३४२४८२८५५२ ८५६२०७६त्र ५३५१२३ 11 " " 13 33 बाह्य विष्कम्भ ६५४४६६५२ २६१७८४६ १०४७१३६३१ ४१८८५४७३३३ १०४७१३६ योजन ६५४४६५५३ 12 २०८ ५३५३ " 12 चतुःसहस्रदीर्घो द्विसहस्रविस्तृतो ब्रहः । पद्मः पद्यान्महापद्म द्विगुणो योजनः स्मृतः ॥ २२० ॥ महापद्मात् तिमिञ्छोऽपि द्विगुणायामविस्तृतः । तुल्या एभिस्त्रिभिः शेषाः क्रमह्रस्वाः त्रयो हृदाः ॥२२१॥ गंगा सिध्वोश्च विष्कम्भः पञ्चविंशति संख्यकः । श्रावावन्तेऽत्र सार्धंद्विशतयोजनसंख्यथा ॥२२२॥ श्राभ्यां द्वे द्वे महानद्यो विदेहान्तं प्रवधिते । द्विगुणद्विगुणण्यासह पमानास्तथापराः ।।२२३॥ 11 २६१७८४१ " ब पुष्करार्धस्थ पद्म प्रावि सरोवरों, गंगादि नदियों, कुण्डों, भद्रशाल वनों एवं トラ
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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