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________________ ३६२ ] सिद्धान्तसार दीपक षभिश्च सरिवाद्याभिः षड्नघः सविस्तराः। द्विगुरद्विगुरगह्रस्वा ऐरावसान्तमञ्जसा ॥२२४॥ गङ्गासिन्ध्वोश्च कुण्डे द्वे सार्धद्विशतविस्तृते । ततो द्विद्विमहानद्योविदेहान्तं सुविस्तृते ॥२२॥ विगुणाद्विगुणव्यास? हे कुण्डे च योजनः । तथान्ये विगुणहासे कुण्डे नद्योढ़योद्धयोः ।।२२६।। द्वौ लक्षौ योजनानां सहस्राः पंचदशप्रमाः । सप्तशतानि चाष्टा पञ्चाशदित्युक्तसंख्यया ॥२२७।। आयामः पुष्कराईं स्यात प्रत्येक भद्रशालयोः । रम्ययोश्चत्यगेहाद्यः पूर्वापरसमाह्वयोः ॥२२॥ लक्षामि विशनिक नियत्वारिंशसाहस्रकाः । देशते योजनानां चकोन विशतिरित्यपि ॥२२६।। द्वयोः प्रत्येकमायामो जेष्ठयोगंजबन्तयोः ।। लक्षाणि षोडशंवाथ षड़विशतिसहस्रकाः ।।२३०॥ शतकषोडशवेति प्रोक्तयोजनसंख्यया । लघीयसो समायाम: प्रत्येकं गजदन्तयोः ॥२३१॥ अर्थ:-- पुष्कराधस्थ पद्म सरोवर ४००० योजन लम्बा और २००० योजन चौडा है। पन सरोवर से महापद्य को लम्बाई चौड़ाई दुगनी अर्थात् लम्बाई पाठ हजार योजन और चौड़ाई ४००० योजन है, इससे तिगिञ्छ सरोवर की लम्बाई चौड़ाई दुगनी है, इसके आगे के केशरी धादि तीनों सरोवर अनुक्रम से ह्रस्व होते हुए दक्षिणागल सरोवरों की लम्बाई चौड़ाई के समान हो लम्बे एक चौड़े हैं। ।।२२०-२२।। गंगा सिन्धु नदियों का प्रादि विष्कम्भ २५ योजन और अन्तिम विष्कम्भ २५० योजन प्रमाण है ।।२२२॥ इसके आगे विदेह तक वृद्धिंगत होता इ-या दो दो महानदियों का यह विष्कम्भ दूना दूना है, इसके आगे ऐरावत क्षेत्र स्थित नदियों तक का विष्कम्भ क्रमशः दुगुरण दुगुण हीन है ! नारी-भरकान्ता, सुवर्णकला-रूप्यकूला और रक्ता-रक्तोदा का व्यास दक्षिण गत छह नदियों के समान है ॥२२३-२२४|| गंगा-सिन्धु सम्बन्धी दो कुण्डों का व्यास २५० योजन प्रमाण है । विदेह पर्यन्त दो दो महानदियों सम्बन्धी दो-दो कुण्डों का यह व्यास दूने दुने प्रमाण बाला प्राप्त होता है, और इसके आगे के दो दो नदियों सम्बन्धी दो दो कुण्डों का व्यास क्रमश: दुगुण-दुमुण होन है ॥२२५-२२६।। पुष्करायस्थ चैत्यगृहों आदि से अलंकृत पूर्वभद्रशाल एवं पश्चिम भद्रशाल वनों का भिन्न भिन्न पायाम २१५७५८ योजन प्रमाण है ।।२२७-२२८।। वृहद् गजदलों में प्रत्येक का भिन्न भिन्न व्यास
SR No.090473
Book TitleSiddhantasara Dipak
Original Sutra AuthorBhattarak Sakalkirti
AuthorChetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size15 MB
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