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दशमोऽधिकार एकोनमापतिलक्षाः सहस्राः षष्टिसंख्यकाः । चतुःशतानि पञ्चाशदित्यनुसंख्ययाखिलाः ॥२५२॥ गङ्गादिप्रमुखा नद्यो मूलोत्तरसमाह्वयाः । पिण्डीकृता भवन्स्यत्र नृक्षेत्रे च क्षयोज्झिताः ॥२५३॥ त्रिंशद्भोगधराः कर्मपथ्व्यः पञ्चदशप्रमाः । शतसंख्या द्रहा:सीतासीतोदामध्यसंस्थिताः ॥२५४।। कुलाद्रिभूधंभागस्थास्त्रिशद्महाश्चपिण्डिताः। गङ्गादिपातभूभागस्थानि कुण्डानि सप्ततिः ॥२५॥ विभङ्गोत्पत्तिकुण्डानि सर्वाणि षष्टिरेव च । गङ्गाविसरितां सच्चीनां सन्ति जनकानि च ॥२५६।। शतानि त्रीणि विशत्यप्राणि कुण्डानि चाजसा । सप्तत्यग्रशतं देशानगर्योदेशसम्मिताः ॥२५७॥ करवृक्षादशेत्येवं संस्थानयासिलाः ।
सार्धद्वीपद्वये ज्ञेया अन्ये वा वेदिकादयः ।।२५८।। अर्थः-ढाई द्वीप के मेरु आदि प्रमुख पर्वतों का कुल योग १५५६ है । अर्थात् लाई द्वीप में कुल -पर्वत १५५६ हैं ॥२५१।।
नोट :--श्रिलोकसार गा० ७३१ में जम्बुद्वीपस्थ प्रमुख पर्वतों की कुल संख्या "तिसदेक्कारससेले" [अर्थात् १ सुदर्शन मेरु + ६ कुनाचल+४ यमकगिरि+२०० काञ्चन पर्वत + ८ दिग्मज + १६ वक्षार पर्वत+४ गजदन्त + ३४ विजया+३४ वृषभाचल और+४ नाभिगिरि हैं, इन सबका योग १+६+४+२००+५+१६+४+३४+३४+४= ] ३११ कही गई है, जबकि एक मेरु सम्बंधी ३११ पर्वत हैं, तब पञ्चमेरु सम्बन्धी प्रमुख पर्वतों की संख्या ( ३११४५)=१५५५ प्रा होती है, किन्तु उपर्युक्त श्लोक में १५५६ कही गई है, क्योंकि इसमें ४ इष्वाकार पर्वत और लिये गये हैं।
मनुष्य लोक ( ढाई द्वोप) में अनाद्यनन्त गंगादि १० मूलनदियों और उनको परिवार नदियों का कुल योग ८६६ ० ४५० है । अर्थात् जम्बूद्वीपस्थ भरत रावत की गंगा, सिन्धु, रक्ता और रक्तोदा इन वार को परिवार नदियाँ (१४०००x४)=५६००७, हैमवत-हेरण्यत्रत क्षेत्र को रोहित, रोहितास्या, स्वर्णकूला और रूप्यकूला की परिवार नदियाँ ( २८००० ५४ )= ११२०००, हरि-रम्यक क्षेत्र स्थित हरित्, रिकान्ता, नारो और नरकान्ता को परिवार नदियां ( ५६०००४४)२२४०००, देवकुरुउत्तरकुरु गत सोता, सीतोदा को परिवार नदियाँ (८४०००x२)=१६८०००, बारह विभंगा नदियों