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मोऽधिकारः [ ३७३ जिसका रक्षक वरुरण देव दक्षिण भाग में श्रौर वरुणप्रभ उत्तर भाग में निवास करते हैं || २५६|| इस द्वीप के आगे वाणीवर समुद्र है. जिसके अधिनायक मध्य और मध्यम नाम के दो देव हैं ||२८७ ॥ इस समुद्र से आगे क्षीरवरद्वीप है, जिसके रक्षक पाण्डु और पुष्पदन्त नाम के दो देव हैं ||२८|| इस द्वीप को वेष्टित करके भीरवर समुद्र है, जो बाल तोर्थंकर के स्नान का कारण है। इस समुद्र के अधिपति विमल और विमलप्रभ नाम के दो देव हैं ।। २८ ।। क्षीरसमुद्र को वेष्टित कर घृतवरद्वीप है, जिसके दक्षिणउत्तर भाग में क्रम से सुप्रभ और महाप्रभ नाम के दो रक्षक देव निवास करते हैं ||२2011 घुतवर द्वीप को वेष्टित कर तर नाम का समुद्र है, जिसके स्वामी कनक और कनकप्रभ नाम के दो देव हैं ||२१|| इसके श्रागे इक्षुवर नाम का द्वीप है, जिसके अधिनायक पूर्ण और पूर्णप्रभ नाम के दो देव हैं ||२२|| इस द्वीप को समावेष्टित कर इक्षुवर नाम का समुद्र है, जिसके अधिपति गन्ध और महागन्ध नाम के दो देव हैं ।। २६३ ||
अब नन्दीश्वर नाम के अष्टम द्वीप की प्रवस्थिति और उसके सूची व्यास श्रादि का प्रमाण कहते हैं।
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त्रिष्टशतकोटी लक्षाश्चतुरशीतिकाः ।
इत्यङ्क योजनव्यास द्वीपो नन्दीश्वरो भवेत् ॥ २६४॥ कोटयः सप्तविंशत्यधिकत्रिशतसम्मितरः । पञ्चषष्टिप्रमालक्षा इति योजनसंख्यया ।। २६५॥ प्राfदसूची भवेदस्य द्वोपस्य धर्मधारिणः । द्विपञ्चाशम्महातुङ्ग जिनालयादिशालिनः ॥ २६६॥ योजनानां सहस्रकं हि षड् त्रिश कोटयः । द्विलक्षाः सहेस्र द्वे तथा सप्तशतानि च ॥१२७॥ त्रिपंचाशवथ क्रोशी द्वावित्यङ्कासयोजनः ।
तस्या विलघु सूच्या श्रादिमा परिधिर्मता ॥ २६८ ॥ षट्शतानि तथा पंचपंचाशत्कोटयः पुनः । त्रयस्त्रशच्च लक्षाणि चेति योजनसंख्यया ॥ २६९॥ प्रतिमा महती सूची प्रोदिता श्रोगणाधिपैः । दीपस्यास्य जिनागारं : जगदानन्दकारिणः ||३०० ॥ द्वासप्ततिसमायुक्तद्विसहस्राणि कोटयः ।
श्रर्थास्त्रशत्त्व लक्षाश्चतुः पञ्चाशत्सहस्रकाः ॥ ३०१ ||