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सिद्धान्तसार दीपक
अब पुष्करायद्वीपस्थ वृक्ष, पर्वत, वेदो, कुण्ड और द्वीप के रक्षक देवों का वर्णन करते हैं :
जम्बूवृक्षसमोत्सेधव्यासत्यालयाङ्कितौ । प्रागुक्त परिवारौ स्तोत्रापि द्वौ पुष्कर मौ ॥२४५।। समस्ता नाभिशैलाश्च यमका वृषभाद्रयः । ह्रदा भोगधराः सर्वा दिग्गजाः कनकाद्रयः ।।२४६।। वेदीकुण्डादयोऽन्ये च द्वीपेऽस्मिन् पुष्करार्धके । विज्ञेया धातकीखण्डद्वीपस्थ गणनासमाः ।।२४७॥ यावन्तो धातकीखण्डे शैला मेदियोऽखिलाः ।। तावन्तः पुष्कराः स्युर्वनवेद्याद्यलकृताः ॥२४॥ गङ्गाविप्रमुखाः सर्वा नयोऽत्रापि भवन्ति छ । धातकीखण्डसंख्याढघा वनवेद्यादिशोभिता: ।।२४६।।
स्वामिनो पुष्करार्धस्य तस्य श्रीजिनभक्तिकौ । . स्तः परपुण्डरीकाल्यो दक्षिणोत्तरवासिनी ॥२५०।।
अर्थः-जम्बूद्वीपस्थ जम्बूवृक्ष के उत्सेध और आयाम सदृश उत्सेध ( १० योजन ) एवं व्यास - ( मध्यभाग की चौड़ाई ६ योजन और अग्रभाग की ४ योजन ) से युक्त, चैत्यालय प्रादि से अलंकृत तथा पूर्वोक्त परिवार ( १४०१२० ) वृक्षों से वेष्टित पूर्व-पश्चिम दोनों पुष्कराधों में दो एरण्ड के वृक्ष स्थित हैं ।।२४५।। पुष्करार्धद्वीपस्थ समस्त नाभिगिरि, यमगिरि, वृषभाचल, सरोवर, सर्व भोगभूमियाँ, दिग्गज पर्वत, काञ्चनपर्वत, वेदियाँ एवं कुण्ड प्रादि और भी अन्य सभी को प्रभाग संख्या धातकोखण्मुदीपस्थ नाभिगिरि आदि की प्रमाण संख्या के समान ही जानना चाहिए ॥२४६-२४७।। घातको खण्ड में मेरु आदि जितने पति हैं, वनवेदियों आदि से अलंकृत उतने ही पर्वत पुष्कराचंद्वीप में हैं ॥२४८।। गंगादि प्रमुख नदियों सहित धातकी खण्ड में जितनी नदियाँ हैं, वनवेद्यादि से सुशोभित उतनो ही नदियाँ पुष्कराद्विीप में हैं ।। २४९ ॥ श्रये जिनेन्द्र भगवान की भक्ति से युक्त, दक्षिण और उत्तर दिशा में निवास करने वाले पद्म और पुगडरीक नाम के दो व्यन्तर देव पुष्करा द्वीप के अधिपति हैं ॥२५०।। अब प्रड़ाई द्वीपस्थ पर्वतों और नदियों आदि की एकत्रित संख्या कहते हैं :--
एकोनषष्टिसंयुक्तसार्धसहस्रसम्मिताः । सार्धद्वीपद्वये सर्वे मेर्वादिप्रमुखादयः ॥२५१।।