________________
३२४ ]
सिद्धान्तसार दोपक
बटवानल का नाम पाताल, दक्षिण दिश स्थित का नाम बड़वामुख, पश्चिम दिशा स्थित का कदम्बक और उत्तर दिशा स्थित पाताल का नाम युगकेशरी है ।।२२-२४।। इन चारों पातालों के अन्तराल में चारों विदिशामों गत श्रेणी रूप से स्थित चार मध्यम पाताल हैं, और इन चार दिशा सम्बन्धी तथा चार विदिशा सम्बन्धी पाट पातालों के पाठ अन्तराल हैं, जिनमें १२५-१२५ जघन्य पाताल हैं। जिनागम में इन समस्त पातालों का योग (१२५४८-१०००+४+४)- १००८ अर्थात् एक हजार प्राउ कहा गया है ।।२५-२७||
अब तीनों प्रकार के पातालों का प्रवगाह प्रावि कहते हैं :--
ज्येष्ठानामवगाहोऽस्तिलक्षकयोजनप्रमः । मध्यभागे महाव्यासो लक्षयोजनमानकः ।।२।। पातालानामधोमागे सहस्त्रदशसम्मितः। योजनानां लघुव्यासो मुखेऽधोभागसनिमः ॥२६॥ चतुर्णा मध्यमानां च सहस्राणि दशेयहि । अवगाहोऽवगाहेन समोऽस्ति मध्यविस्तरः ।।३०॥ योजनानां सहस्र कोऽधस्तले विस्तरो मतः । पातालानां मुखे व्यासः सहस्रयोजनप्रमः ॥३१॥ अनगाहो जघन्यानां योजनानां सहस्रकम् । मध्यभागे च विष्कम्भोऽवगाहेन समानकः ॥३२॥ शतकयोजनव्यासः पासालानामधस्तले ।
योजनानां शतकं स्याद्विस्तारस्तन्मुखे क्रमात् ॥३३।। अर्थ:-चारों दिशाओं में स्थित महा पातालों का यवगाह एक लाख योजन, मध्य भाग का व्यास एक लाख योजन, पातालों के अधोभाग का व्यास दश हजार योजन यौर मुख व्यास भी दश हजार योजन प्रमाण है ॥२८-२९॥ चारों मध्यम पातालों का अवगाह दश हजार योजन, मध्य व्यास दश हजार योजन, मुख व्यास एक हजार योजन और अधोभाग का व्यास भी एक हजार योजन प्रमाण है ।।३०-३१।। एक हजार प्रमाण जघन्य पातालों का पृथक् पृयक् अवगाह एक हजार योजन, मध्य व्यास एक हजार योजन तथा मुख और अधोभाग का व्यास सौ-सौ योजन प्रमाण है ॥३२-३३।।
[इसका चित्ररण अगले पृष्ठ पर देखिये।]