________________
दशमोऽधिकारः
[ ३४५
तिमिञ्छ सरोवर का विस्तार आदि महापद्म से दुना है । इसके प्रागे केशरी महा पुण्डरीक और पुण्डरोक सरोवरों का प्रमाण क्रमशः तिगिछ, महापद्म और पद्म सरोवरों के सदृश ही है ।। १४० - १४१|| अब घातकीखण्डस्थ कुण्डों का ध्यास आदि कहते हैं. गङ्गाकुण्डस्य विस्तारः पञ्चविंशतियोजनैः ।
:---
शताग्रश्च तथा सिन्धुकुण्डस्य कीर्तितो बुधैः ॥ १४२ ॥ सोतोदान्त नदीकुण्डानामस्माद् द्विगुणः क्रमात् । व्यासो वृद्धियुतोऽन्येषामेभिः कुण्डैः समानकः || १४३||
श्रर्थः - गणधरों के द्वारा गंगा कूट का विस्तार १२५ योजन और सिन्धु कूट का विस्तार भी १२५ योजन कहा गया है। इसके श्रागे सीतोदा नदी पर्यन्त यह विस्तार दुगुना दुगुना कहा गया है। सीतोदा नदी के आगे कुण्डों का विस्तार क्रमशः उत्तर के श्रर्थात् गंगा आदि कुण्डों के विस्तार सहश ही जानना चाहिए । १४२-१४३॥
अब धातकीखण्डस्य गंगादि नदियों का हिमवन् श्रादि पर्वतों पर ऋजु ( सीधे ) बहाव का प्रमाण कहते हैं
--
योजनानां सहस्राणि ह्य कोनविंशतिस्तथा । त्रिशतानि नवाग्राणीति गङ्गासरितो मतम् ॥१४४॥ ऋजुत्वं हिमवन्मूनि सिन्धोश्च गमनं प्रति । रक्तारक्तादयोस्तद्वच्छ्वियंचलमस्तके || १४५ ।। शेषाखिलनदीनां स्यात् ऋजुत्वगमनं द्रहात् ।
कुलाद्रितटपर्यन्तं पर्वतोपरि नान्यथा ।। १४६ ॥
अर्थः- धातकीखण्डस्य गंगा नदी हिमवन् पर्वत पर १६३०६ योजन पर्यन्त सीधी जाती है । हिमवन् पर्वत पर सिन्धु नदी का सीधा बहाव भी इतना ही है । इसी प्रकार शिखरी पर्वत पर रक्तारक्तोदा नदियों का भी सीधा बहाव १६३०१ योजन प्रमाण ही है। शेष सम्पूर्ण नदियों का अपने अपने पर्वतों के ऊपर सीवा बहाव सरोवरों से कुलाचलों के तट पर्यन्त है, अन्य प्रकार नहीं है ।। १४४ - १४६ ।।
:--
अब गंगा सिन्धु आदि नदियों का निर्गम आदि स्थानों का व्यास कहते हैं गङ्गा सिध्वोश्च विस्तारो निर्ममे योजनान्यपि ।
सार्धं द्वादशवाध्यते पञ्चविंशाधिकं शतम् ॥ १४७ ॥