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दशमोऽधिकारः
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विभङ्गानदीनां मेलित विष्कम्भः पञ्चदशशतयोजनानि । देवशरण्यभूतारण्ययेोरेकत्रीकृता विस्तृति एकादशसहस्रषट्शताष्टाशीति योजनानि इत्येकत्रीकृतः सफल: विदेहस्य विष्कम्भः चतुर्लक्षयोजन
प्रमाणः स्यात् ।
अर्थ. - विदेहक्षेत्र का विस्तार चार लाख योजन प्रमाण कहा गया है, यहाँ मेरु पर्वत श्रादि forम्भ विभागों के द्वारा उसकी संख्या कही जाती है :---
मेरु पति का व्यास ६४०० योजन है, पूर्व भद्रशाल और पश्चिम भद्रशाल, इन दोनों के व्यास का योग २१५७५८ योजन है । कच्छ्रादि १६ देशों का एकत्रित व्यास १५३६५४ योजन प्रमाण है । आठ वक्षार पतों का एकत्रित व्यास ८००० योजन है। यह विभंगा नदियों का एकत्रित व्यास १५०० योजन और देवारण्य-भूतारण्य का एकत्रित व्यास ११६८८ योजन है। इन सर्व विष्कम्भों की संख्या को एकत्रित कर देने पर विदेह क्षेत्र का ( १४०० + २१५७५८ + १५३६५४+६०००+ १५००+ ११६८८ = ) ४००००० योजन प्रमाण विष्कम्भ प्राप्त हो जाता है ।
अब देश एवं नगरी आदि के नाम कह कर पश्चिम धातकी खण्ड की व्यवस्था दर्शाते हैं
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जम्बूद्वीप विदेहे सामान्युक्तानि यानि च ।
देशानां नगरीणां सुविभङ्गासरितां तथा ॥ १७५ ॥ क्षारपर्वतादीनां सान्येव निखिलान्यपि ।
ज्ञेयानि धातकीखण्डोपेऽस्मिन् द्विविधेऽखिले ॥ १७६॥ इत्येषा वर्णना सर्वा देशशैलादिगोचरा 1
पश्चिमे धातकीखण्डे ज्ञेयाक्षेत्रावि संख्या ॥ १७७॥
अर्थः- पूर्ण और पश्चिम घातकी खण्डों में स्थित त्रिदेह क्षेत्रों के देशों के नाम, नगरियों के नाम, विभङ्गा नदियों के नाम और अक्षार पर्वत आदि अन्य सभी के नाम जम्बुद्वीपस्थ विदेह के देशों, नगरियों एवं नदी-पर्वतों के नाम के सदा ही हैं। अर्थात् जो जो नाम जम्बूद्वीपस्थ विदेह में हैं, वही वह नाम यहाँ हैं ।। १७५ - १७६ ।। पूर्व धातकी खण्ड में देश, पर्वत एवं क्षेत्रादि की जो जैसी तथा जितनी संख्या श्रादि कही है, एवं जैसा जैसा वर्णन किया है, वैसा वैसा ही तथा उतनी ही संख्या प्रमाण में समस्त वर्णन पश्चिम धातकी खण्ड में जानना चाहिए ।। १७७.
अब धातकीखण्डस्य यमकगिरि श्रादि पर्वतों की संख्या कहते हैं :--
अष्टौ यमकशैला ये दूधष्टदिग्गज पर्वताः ।
अष्टौ नाभिनगा ष्षष्टिषभपर्वताः ॥ १७८ ॥