________________
दशमोऽधिकार: अब देवारण्य-भूतारण्य वनों का पायाम प्रादि कहते हैं :--
प्रागुक्तद्विगुणन्यासे रम्ये वे अवतो बने ।
देवारण्याख्यभूलारण्याह्वये वेदिकातिते ।।१६३॥ अमयी प्रत्येक विष्मः पंचसहस्त्रायशत चतुश्चत्वारिंशयोजनानि ।
योजनानां सहस्र द्वे तथा सप्तशतानि च । एकोननवतिनिवतिकला जिनागमे ॥१६४।। द्विषद्विशतसंख्यानां कलानामिति कोतिता।
पायामवृद्धिरेतस्य द्विवनस्य पृथग्विषा ॥१६५।। अर्थ:-धातकीखण्डस्थ विदेह में वेदिका आदि से अलंकृत तथा अत्यन्त रमणीक देवारण्यभूतारण्य नाम के दो वन हैं। इनका व्यास जम्बूद्वीपस्थ वनों के घ्यास के प्रमाण से दूना है ।।१६३।। इन दोनों वनों में से प्रत्येक बन का विष्कम्भ-५८४४ योजन प्रमाण है । जिनागम में पृथक् पृथक दोनों वनों के मायामों में वृद्धि का प्रमाण २७८६३३ योजन कहा गया है ।।१६४-१६५।। अब विभङ्गा नदियों के प्रायाम प्रादि को कहते हैं :
नद्यो द्वादश विस्तीर्णाः सार्धद्विशतयोजनः । विभङ्गाख्या भवेयुः प्राग् धातकोखण्डनामनि ॥१६६॥ कुण्डव्याससरिद् व्यासोनं विदेहस्य भूतलम् । यदर्ध स विभङ्गानामायामोऽस्ति पृथग्विधः ॥१६७।। शतमेकोनविश्त्याधिकं च योजनान्यपि । द्विषद्विशतभागानां भागाः पञ्चाशदेव च ।।१६।। भागद्वयाधिका इत्यायामवृद्धिजिनः स्मृता।
प्रत्येकं बहुभेदोऽत्र विभङ्गासरितां क्रमात् ॥१६६।। अर्थ:-पूर्वा धातकी खण्ड में २५० योजन विस्तार वाली, विभंगा नाम की बारह नदियां हैं।।। १६६ ।। विदेह क्षेत्र के पास में से कुण्डग्रास और नदी का पास कम करके अवशेष को आधा करने पर बिभसा की लम्बाई प्राप्त हो जाती है। एक एक नदी का यह आयाम भिन्न भिन्न प्रकार का कहा गया है ।। १६७ ॥ जिनेन्द्र भगवान के द्वारा विभङ्गा नदियों का बहुत भेद वाला यह मायाम क्रम से ११६५५२३ योजन वृद्धि के साथ कहा गया है। अर्थात् विभङ्गा का आद्यायाम ५२८८ ६१ योजन प्रमाण है, इसमें वृद्धि प्रमाण ११६:११ योजन मिला देने पर