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सिद्धान्तसार दोपक कहा गया है ॥२०४॥ मानुषोत्तर पर्वत की अभ्यन्तर भूमि पर्यन्त पुष्कराध के वाह्य सूची व्यास की सूक्ष्म परिधि जिनेन्द्रों के द्वारा १४२३०२४६ योजन और २ कोस प्रमाण कही गई है ॥२०५-२०६।। पुष्कराई द्वीप के बारह कुलाचल और दो इष्वाकार पर्वतों से अवरुद्ध क्षेत्र ३५५६८४ योजन और एक योजन के १६ भागों में से ४ भाग ( यो० ) प्रमाण कहा गया है ।।२०७-२०६।। प्रम पुष्करार्धस्थित बारह कुलाबलों के ग्यास प्रादि का प्रमाण कहते हैं :
द्विषटकुलायो जम्बूद्वीपसमाजशनतिमा अष्टलक्षायता योजनानामत्र प्रकीसिताः ॥२०॥ प्रस्त्ययं हिमपान धासकोखण्डस्थहिमाचलात । द्विगुरणयास एतस्माच्चतुर्गुणोपरोगिरिः ॥२१०॥ ततश्चतुर्गणो व्यासो निषधोऽन्ये त्रयोऽद्रयः ।
नीलाद्याः पर्वतै रेभिः ऋमहान्या समानकाः ।।२११॥ अर्थ:-पुष्करार्ध द्वीप में जाम्बुद्वीपस्थ कुलाचलों को ऊँचाई प्रमाण उत्सेध को लिये हुए पाठ प्राउ लाख योजन लम्बे बारह कुलाचल पर्वत कहे गये हैं ॥२०६।। यहाँ का हिमवान् पर्वत धातकी खण्डस्थ हिमवान् पर्वत के व्यास से दुने व्यास वाला है, इसके आगे आगे निषध पर्वत पर्यन्त का ध्यास हिमवन् पर्गत से चौगुना चौगुना होता गया है। इसके बाद नौल आदि तीन पर्वतों का व्यास समान क्रम हानि को लिए हुए है 1 नोल-निषध, रुक्मी-महाहिमवन् पोर शिखरी-हिमवान् पर्वतों का व्यास समान प्रमाण को लिए हुए है ।।२१०-२११॥
प्रमोषां प्रत्येकं पृथक् विष्कम्भोन्नती-निगद्यते :--
हिमवतः उत्सेधः शतयोजनानि । विष्कम्भश्च चतुःसहस्रद्विशतयोजनानि, योजनस्यैकोनविंशतिभागानां कलाः दश । महाहिमवतः उदयः द्विशतयोजनानि व्यासः षोडशसहस्राष्टशतद्विचत्वारिंशयोजनानि द्वे कले च । निषघस्पोन्नतिः चतुःशतयोजनानि व्यासः सप्तषधिसहस्र त्रिशताष्टषष्टि योजनानि एकोनविंशतिभागानामष्टकालाः। नीलस्योत्सेधव्यासी निषधेन समानौ स्तः। रुक्मिणः उन्नतिव्यासी महाहिमवता तुल्यौ च । शिखरिणः उदयविस्तारो हिमवता समो।
(उपर्युक्त गद्य का अर्थ अगले पृष्ठ पर तालिका में देखें)